- कुष्ठरोगियों की बस्ती सुंदर पुर में बने मास्क का बाजार में है खूब डिमांड,लोग कर रहे पसंद
- कुष्ठ कॉलोनी की आधी आबादी लॉक डाउन में घरों में कर रही है मास्क का निर्माण,नही फैलाती दुसरो के आगे हाथ
रक्सौल।(vor desk)।विश्व महामारी बने कोरोना वायरस के विरुद्ध ठूंठ हाथों ने भी मोर्चा संभाल रखा है।रक्सौल के कुष्ठ रोगियों की बस्ती सुंदरपुर की आधी आबादी इस मोर्चे पर सबसे आगे है।कुष्ठ रोगियों व उनके परिजनों द्वारा अब तक आठ हजार से ज्यादा एंटी कोरोना मास्क बनाया जा चुका है।जो करोना वायरस से बचाव के काम आ रहा है।खादी कपड़े से बने हरे व नीले रंग के इस मास्क को सीमावर्ती रक्सौल समेत बिहार के अलावे नेपाल में भी खूब पसंद किया जा रहा है।
इस मास्क को बनाने की प्रेरणा सुंदरपुर की संचालिका व साध्वी कविता भटराई से मिली।इसके बाद यहां की आधी आबादी इसमे जी जान से से जुट गई।लिटिल फ्लावर लेप्रोसी वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष महेश अग्रवाल बताते हैं कि सोशल डिस्टेंस को मेनटेन रखने के लिए वर्कशॉप की बजाए घर घर मे काम हो रहा है।एक दर्जन महिलाएं इस काम मे जुटी हुई हैं।
लिटिल फ्लॉवर खादी विलेज इंड्रस्ट्रीज से जुड़ी महिलाएं रोशन बनो, रेयाजुल मियां, सविहा प्रवीण आदि बताती हैं कि हमारे बनाये मास्क कोरोना से बचाव के काम आ रहे हैं।क्योंकि,बाजार में मास्क की किल्लत व कालाबाजारी शुरू हो गई थी।इसे बनाने से हम स्वरोजगार से जुड़े रहते हैं।किसी के आगे हाथ फैलाने की नौबत नही आती।लॉक डाउन में समय भी कट जाता है।
वहीं, एसोसिएशन के डाइरेक्टर कृष्णा यादव का कहना है कि प्रति दिन कम से कम डेढ़ -दो सौ मास्क उत्पादन होता है। यहां बने मास्क तकरीबन पैंतीस व पचास रुपये में बाजार में बिकता है।जबकि,इसे बनाने पर प्रति मास्क दस से पंद्रह रुपये मिल जाता है।जिससे इनको ‘लॉक डाउन’ में भी जरूरत के खर्च इतनी कमाई हो जाती है।
बता दे कि यहां तिरँगा ध्वज भी निर्मित होता रहा है।साथ ही जब राज्य के खादी उद्योग से संकट में हैं।तब भी सुंदरपुर में बने खादी वस्त्र की देश विदेश तक डिमांड है।बता दे कि समाज से बहिष्कृत कुष्ठ रोगियों की बस्ती सुंदरपुर की स्थापना 1980 में केरल के ब्रदर कृष्टो दास ने किया था।तब से यहां पचास हजार से ज्यादा कुष्ठ रोगी ठीक हो चुके हैं।