Saturday, November 23

‘लॉक डाउन’ में बीरगंज पुलिस ने सवा चार सौ भारतीय को ‘लॉक अप’ में डाला!

बीरगंज पुलिस के नियंत्रण में भारतीय नागरिक

भिजिट मधेश के संयोजक ओम प्रकाश सर्राफ ने बीरगंज प्रशासन से पुछा सवाल -“बचाने के लिए या मारने के लिए पकड़ा?”

भारतीय नागरिकों के प्रति दोयम दर्जे के रवैये से सीमा क्षेत्र में है गहरी नाराजगी,उठ रही भारतीय दूतावास से पहल की मांग

बीरगंज।( vor desk )।बीरगंज पुलिस ने मंगलवार की रात चलाये गए विशेष अभियान के तहत लॉक डाउन का उल्लंघन के आरोप में करीब सवा चार सौ भारतीय नागरिकों को नियंत्रण में ले लिया है।पुलिस टीम ने पकड़े गए सभी लोगों को बीरगंज स्थित ठाकुर राम बहुमुखी कैम्पस( कॉलेज ) के महिला छात्रावास के एक कमरे में ठूंस कर बन्द कर दिया।इसकी खबर जब सरेआम हुई,तो,लोग पुलिस के रवैये की आलोचना करने लगे।क्योंकि,पुलिस ने उन्हें कमरे में रख कर ग्रिल पर ताला लगा दिया।उन्हें रात के 12 बजे से दिन के 12 बजे तक भूखा -प्यासा रखा गया।उनके आरजू मिन्नत पर भी उनकी एक नही सुनी गई।यही नही शौच भी नही जाने दिया गया।खाना- पीना का प्रबंध भी नही हुआ।बीरगंज के सामाजिक संगठनों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई।विजिट मधेश के संयोजक ओम प्रकाश सर्राफ ने बीरगंज प्रशासन से पूछा कि आखिर कोरोना से बचाने के लिए उन्हें पकड़ा गया या मारने के लिए?वैसे पुलिस के इस रवैये की दिन भर आलोचना होती रही।

इससे पहले नेपाल सरकार की तब आलोचना हुई थी।जब सोमवार को नेपाल बॉर्डर सील होने व लॉक डाउन होने के बाद भी दो हजार से ज्यादा भारतीय नागरिक नेपाल के विभिन्न हिस्से से रक्सौल बॉर्डर पहुच गए थे।रक्सौल प्रशासन, एसएसबी को काफी मशक्कत करनी पड़ी। बॉर्डर का बैरियर गिरा देना पड़ा।इस क्रम में भारतीय नागरिकों को लौटने पर पुलिस व आर्म्ड पुलिस फोर्स ने बीरगंज प्रवेश की अनुमति नही दी।किसी तरह वे सभी खेत खलिहान होते वतन लौट सके।

इससे सीमा क्षेत्र के लोगो मे काफी नाराजगी देखी गई।लोगों का कहना था कि भारत ने भूकम्प हो या मधेश आंदोलन, सब मे बढ़ कर साथ दिया।नेपाल ने भारतीय लोगों को भूखे प्यासे रखा।और पास दे दे कर वाहनों से बॉर्डर भेज दिया।

इसी तरह फिर से नेपाल पुलिस -प्रशासन का अमानवीय चेहरा बुधवार को सामने आया,जब ,भारतीय लोगों को पकड़ कर एक ही कमरे में भेड़ बकरी की तरह ठूस दिया गया।यही नही इसमे सोशल डिस्टेंस की धज्जियां उड़ाई गई।एक ओर कोरोना वायरस संक्रमण से बचाने के लिए लॉक डाउन व बॉर्डर सील किया गया हैं।वहीं,प्रशासन की इस लापरवाही व अमानवीयता से संक्रमण के विस्फोटक होने की आशंका को खारिज नही किया जा सकता।

इधर,कुछ सामाजिक सँगठनो ने प्रशासन के समन्वय से उन्हें बिस्किट,चिवड़ा मीठा व पानी दिया।लेकिन,पकड़े गए लोग अपराधी की तरह बर्ताव से काफी व्यथित दिख रहे थे।नियंत्रण में लिये गए सुगौली के धरीक्षण प्रसाद ने कहा कि- हम लोगों को हेल्थ जांच के नाम पर बीरगंज के इनरवा चौकी से पकड़ कर लाया गया।लेकिन,यहां बन्द कर दिया गया।जबकि,हम चार दिन में काठमांडू से चल कर बीरगंज आये थे।उन्होंने कहा था कि जांच कर भारत भेज दिया जाएगा।वहीं,बेतिया के राहुल शर्मा ने बताया कि- ‘हमे ऐसे बन्द कर दिया गया,जैसे हम बड़े अपराधी हों।इस तरह कैदी के साथ भी नही होता।हमारे साथ हमारे बच्चे भी भूख से चिल्लाते रहे।लेकिन,पुलिस ने नही सुना।’ उनके साथ महिला व बच्चे भी थे।जिनको भी कैम्पस में सुरक्षा घेरा में भूखे प्यासे रखा गया।

इस बाबत रक्सौल के युवा अन्नू शर्मा कहते हैं कि नेपाल पुलिस प्रशासन का यह अव्यवहारिक व अमानवीय रवैया है। भारत मे लॉक डाउन में भी किसी भी नेपाली नागरिक को वही सम्मान व सहयोग मिलता रहा है।जो भारतीय लोगो के लिए होता है।

वहीं,भारत विकास परिषद के सचिव उमेश सिकरिया ने नेपाल स्थित भारतीय दूतावास से इस मामले में मदद की मांग की है।साथ ही अपील किया कि नेपाल में रहे भारतीय नागरिकों के सहयोग के लिए टॉल फ्री नम्बर जारी किया जाए।उन्हें मदद की जाए।

इधर,पुलिस द्वारा करीब पांच सौ लोगों के पकड़े जाने की सूचना मिली,जिसमे करीब सवा चार सौ भारतीय लोग थे।जिसमे ज्यादातर चम्पारण, गोपालगंज, सीतामढ़ी,मुजफ्फरपुर आदि जिलों के हैं।ये काठमांडू,पोखरा,चितवन आदि अनेको जिलों में फैक्ट्री में या ठेके पर या कार्यरत थे।व्यापारी व पर्यटक भी इसमे शामिल थे।सूत्रों ने बताया कि कई लोगों के पास प्रशासन द्वारा जारी पास भी था।जिससे वे बॉर्डर पहुच सके।लेकिन,बीरगंज प्रशासन ने उन्हें नियंत्रण में ले लिया।इन लोगो का कहना था कि जब प्रशासन ने भेजा,तो,हमे लगा कि हम बॉर्डर पहुच कर अपने देश चले जायेंगे।भूख से मरने से तो अच्छा है देश मे मरें।वहीं,मोतिहारी के उमेश साह ने कहा कि हम अपने देश जाना चाहते हैं।तो प्रशासन मेडिकल जांच कर हमें रक्सौल पहुचा दे।

हालांकि,नेपाल सरकार ने कोरोना वायरस रोक थाम को ले कर सख्ती की है।वहां 1 सौ रुपये जुर्माना से ले कर एक माह कैद व बाधा पहुँचाने पर छह सौ रुपया जुर्माना या छह माह कैद या दोनों की सजा की घोषणा की गई है।इससे भी भारतीय नागरिक सहम गए हैं।और भाग रहे हैं।

भारत मे भी कड़ाई की स्थिति है।लेकिन,इस तरह के अमानवीय व्यवहार की कल्पना बिहार के मजदूरों ने नही की थी।

वैसे,नेपाल में लॉक डाउन की अवधि एक सप्ताह के लिए बढ़ाये जाने व सख्ती शुरु होने से फंसे हुए भारतीय पर्यटक व मजदूर भाग भाग कर बॉर्डर पहुंच रहे हैं।जबकी, भारत व बिहार सरकार ने स्पष्ट निर्देश दे रखा है कि किसी को भी आवाजाही की इजाजत नही दी जाएगी।पकड़े जाने पर कार्रवाई होगी।वैसे यह अनुमान है कि जैसे नेपाल प्रशासन सख्ती बरत रही है।भारतीय लोगों को सहयोग नही मिल रहा।ऐसे में उनके पास एक ही विकल्प होगा देश लौटना।इससे बॉर्डर पर आने वाले समय में इस तरह की परेशानी बढ़नी तय है।

वैसे दिल्ली हो या नेपाल ,सबसे ज्यादा परेशान बिहारी मजदूर या लोग ही हैं।सस्ते व कठिन श्रम के लिए इनका खूब इस्तेमाल होता है।लेकिन,समय निकलते ही सबसे ज्यादा जिल्लत इन्हें ही झेलनी पड़ती है।

यही कारण है कि दिल्ली के बाद नेपाल में भी मजदूर या अन्य लोग परेशानी झेलने को विवश है।
इस बाबत जोम सोम में फंसे रक्सौल निवासी महेश गुप्ता ने दूरभाष पर बताया कि वे मुक्ति नाथ दर्शन को गए थे।लेकिन,लॉक डाउन में फस गए।एक लॉज में उन्हें जगह मिली।लेकिन,प्रशासन वहां से सब्जी भी खरीदने पर मार रही है।सात दिनों से फंसे हैं।दूतावास से भी मदद मांगी,लेकिन,कुछ नही हुआ।

फिलहाल, बीरगंज में प्रशासन के नियंत्रण में लिए गए भारतीय नागरिकों को लॉक डाउन तक देश वापसी के आसार कम नजर आ रहे हैं।लेकिन,भारतीय दूतावास की पहल शुरू है।बीरगंज प्रशासन ने इनके रहने व खाने की व्यवस्था के संकेत दिए हैं।पर्सा जिला के सहायक जिलाधिकारी ललित बस्नेत व एसपी गंगा थापा ने कहा कि भारत मे भी लॉक डाउन है।बॉर्डर भी सील है।इसलिए इन्हें बीरगंज ही रहना होगा।इसको ले कर एक बैठक बुलाई गई है।जिसमे तय होगा कि क्या करना है।इधर,बीरगंज के मेयर विजय सरावगी ने भी प्रशासन से इस बाबत पहल की है ताकि,भारतीय नागरिको को परेशानी न हो।

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