Sunday, May 18

रक्सौल के लाल प्रतीक ने समुद्र तल से 4130 मीटर ऊँचे नेपाल के अन्नपूर्णा बेस कैम्प पर लहराया तिरंगा !


रक्सौल।(Vor desk)।सीमाई शहर रक्सौल के पुराना एक्सचेंज रोड निवासी प्रभु शंकर प्रसाद के पुत्र प्रतीक कुमार ने नेपाल की सबसे ख़तरनाक चोटी माउंट अन्नपूर्णा के बेस कैम्प पर तिरंगा लहराकर न केवल शहर का बल्कि देश का नाम रोशन किया है। प्रतीक ने यह कठिन अभियान महज तीन दिनों में पूरा कर एक नया इतिहास रचा है। उन्होंने अप्रैल 2025 में ही अन्नपूर्णा बेस कैम्प पर तिरंगा लहरा कर देश का गौरव स्थापित किया ।गौरतलब है पंजाब के चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी से बी.बी.ए. की डिग्री प्राप्त प्रतीक मेधावी विद्यार्थी होने के साथ- साथ खेलों में भी विशेष अभिरुचि रखते हैं तथा पर्वतारोहण को लेकर गहरी जिज्ञासा थी । फलस्वरूप पिता प्रभु शंकर प्रसाद ने बेटे की भावनाओं को समझते हुए बेटे प्रतीक को 4130 मीटर ऊँचे अन्नपूर्णा बेस कैम्प पर तिरंगा लहराने के अभियान की इजाज़त दी। वहीं प्रतीक ने बताया कि यात्रा नेपाल के सहयोग से उन्होंने यह अभियान को पूरा किया। प्रतीक ने यह भी बताया कि धान्द्रुकी (नेपाल) से कठिन चढ़ाई शुरू की , जिसमें बारिश, स्नोफॉल,बेहद संकीर्ण रास्ते, उबड़-खाबड़, पथरीली रास्तों को पार जब समुद्र तल से 4130 मीटर ऊँचे अन्नपूर्णा पोस्ट पर तिरंगा लहराया तो गर्वानुभूति हुई। प्रतीक ने इस बात को रेखांकित किया अन्नपूर्णा बेस कैम्प की यात्रा एक संकल्प और परिवर्तन की यात्रा साबित हुई है।
नेपाल की यात्रा (ट्रेक टेल्स) के साथ 4,130 मीटर ऊँचे अन्नपूर्णा बेस कैंप पर पहुंचना सिर्फ एक शारीरिक चुनौती नहीं थी, बल्कि यह आत्म-विकास, दृढ़ता और आत्म-खोज की एक अविस्मरणीय यात्रा रही। उन्होंने इस अनुभव को स्मरण कर कुछ प्रमुख सीख और भावनाएं साझा करते हुए विस्तार से बताया कि पहाड़ों का अप्रत्याशित मौसम हर कदम पर मेरी सहनशक्ति की परीक्षा ले रहा था। अचानक बर्फबारी, तीखी ठंड और लगातार बदलते मौसम ने हर दिन को एक नई चुनौती बना दिया। लेकिन इन्हीं कठिनाइयों ने मुझे लचीलापन और धैर्य का महत्व सिखाया। मौसम मेरे लिए एक शिक्षक बन गया, जिसने मुझे सिखाया कि अनिश्चितताओं को अपनाना और प्रक्रिया पर भरोसा करना कितना जरूरी है, चाहे रास्ता कितना भी कठिन हो।
मुझे सबसे अधिक प्रेरणा मिली खुद को परखने की इच्छा से। हिमालय की भव्यता और सुंदरता ने हमेशा मुझे आकर्षित किया था। जब मैंने उन लोगों की कहानियां सुनीं जिन्होंने अपने डर को हराया और असंभव को संभव किया, तो मुझे भी एक नई राह पर चलने की प्रेरणा मिली। लेकिन असली प्रेरणा भीतर से आई — खुद को यह साबित करने की कि मैं न केवल शारीरिक कठिनाइयों को पार कर सकता हूँ, बल्कि अपने मानसिक अवरोधों को भी तोड़ सकता हूँ।पोखरा से गंड्रुक, झिनु, चोमरोंग, अपर सीनुवा, बांस, डोभन, देउराली, हिमालय और माछापुच्छ्रे बेस कैंप होते हुए अन्नपूर्णा बेस कैंप तक पहुँचने में करीब तीन दिन लगे। लेकिन नीचे लौटने में सिर्फ दो दिन लगे। इस ऊँचाई की खूबसूरती में हर पल जैसे खुद में एक जीवन का पाठ समेटे हुए था। पहाड़ों में समय सीधा नहीं चलता — वो खींचता है, सिमटता है, और आपको वर्तमान में जीना सिखाता है। हर सूर्योदय और सूर्यास्त के साथ मैंने शांति और एकांत के लम्हों की कद्र करना सीखा।
अन्नपूर्णा बेस कैंप पहुँचना खुशी का एक अवर्णनीय क्षण था, लेकिन असली परिवर्तन यात्रा में ही छिपा था। मैं वापस लौटा तो केवल एक फिट शरीर के साथ नहीं, बल्कि एक नई सोच, आत्मविश्वास और आत्मबल के साथ लौटा। यह ट्रेक मेरे लिए केवल एक ट्रेक नहीं था — यह मेरे दृष्टिकोण को बदलने वाला अनुभव था। इसने मुझे सिखाया कि सच्चे अनुभव असुविधा और अनिश्चितता को अपनाने में ही मिलते हैं।
जो भी ट्रेक पर जाने का सोच रहा है, उनके लिए मेरा यही संदेश है: यह केवल शारीरिक साहस की मांग नहीं करता — यह आत्मिक विकास का एक सुनहरा अवसर है। हर कदम आपके अंदर एक नए और मजबूत इंसान को जन्म दे रहा होता है।
अन्नपूर्णा बेस कैम्प पर सफलतापूर्वक तिरंगा लहराने के बाद अति उत्साह से लबरेज प्रतीक आने वाले वर्षों में माउंट एवरेस्ट बेस कैम्प पर भी तिरंगा लहराने की योजना बना रहे हैं। प्रतीक के इस अभियान की सफलता पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है, जिनमें प्रमुख रूप से प्रतीक के चाचा गौरीशंकर प्रसाद, भरत प्रसाद गुप्त,शिवपूजन प्रसाद, रजनीश प्रियदर्शी, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह, नारायण प्रसाद निराला,रमेश कुमार, अरूण कुमार गुप्ता, राजकुमार गुप्ता,ज्योतिराज गुप्ता, पूनम गुप्ता, मुरारी गुप्ता, सरोज गिरि, अशोक कुमार गुप्ता, राजकुमार रौनियार समेत नगर के कई गणमान्य नागरिक शामिल रहे।

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