रक्सौल।(vor desk)। रक्सौल अनुमंडलीय अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को जल्द ही मुफ्त में अल्ट्रासाउंड की भी सुविधा मिलने वाली है। अस्पताल प्रबंधन के अनुसार गुरुवार को ही अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मशीन लाई गई है। राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार ने कलर डॉप्लर अल्ट्रासाउंड मशीन अनुमंडलीय अस्पताल को उपलब्ध करा दिया है। जिससे अब अल्ट्रासाउंड की सुविधा के लिए मरीजों को अब निजी अस्पताल में नहीं जाना पड़ेगा। बताया गया है कि मशीन संचालन के लिए एक डॉक्टर और टेक्नीशियन को प्रशिक्षण दिया जाएगा। जिससे मरीजों के इलाज में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हो।
अस्पताल के उपाधीक्षक डॉक्टर राजीव रंजन कुमार ने बताया कि मशीन आ चुकी है,जो हाई रेजुलेशन के साथ कलर ड्रॉपलर मशीन है। ग्राउंड फ्लोर पर अल्ट्रा साउंड के लिए बने कक्ष में इसे इंस्टॉल करने का काम एक दो दिन में शुरू हो जाएगा,जिसके बाद इसका विधिवत उद्घाटन और लोकार्पण होगा।जिसकी तैयारी शुरू कर दी गई है।इस संबंध में जल्द ही डाक्टरों की बैठक होगी।उन्होंने बताया कि अस्पताल में रेडियोलोजिस्ट विभाग के कोई डाक्टर नही है। जिसके लिए विभाग को पत्र लिखकर डाक्टर की मांग की गई। ज्ञात हो कि लंबे समय से अनुमंडलीय अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मशीन लगाने की मांग उठ रही थी। ताकि मरीजों को निजी अस्पताल का चक्कर लगाने से मुक्ति मिल सके।
निजी जांच केन्द्रों में जाने को मजबूर थे मरीज : रक्सौल स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में आउट सोर्सिंग के तहत करीब चार पांच वर्ष पहले अल्ट्रा साउंड सेवा उपलब्ध थी,जो बाद में बंद हो गई।इसी अहाते में पिछले साल 5जून 2022को केंद्रीय और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री ने 50बेड वाले अनुमंडल अस्पताल का उद्घाटन किया था,तब से अल्ट्रा साउंड सेवा उपलब्ध कराने का आश्वासन मिल रहा था।
अनमंडलीय अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की सुविधा शुरू नहीं होने के कारण मरीजों को जांच कराने के लिए निजी जांच कराने के लिए मरीज मजबूर थे। खासतौर पर प्रसव पीड़ित महिलाओं को काफी परेशानी उठानी पड़ती थी,क्योंकि,प्रति माह करीब पांच सौ से ज्यादा एएनसी जांच होती है।ऐसे में उन्हें कलर ड्रॉपलर जांच के लिए नेपाल के वीरगंज तक की दौड़ लगानी पड़ती थी,मोटी रकम भी लगती थी । इस बात को ध्यान में रखते हुए राज्य स्वास्थ्य समिति ने बिहार मेडिकल सर्विस एंड कॉरपोरेशन लिमिटेड में माध्यम से यह मशीन उपलब्ध कराई गई है।सेवा उपलब्ध होने से मरीजों और गर्भवती महिलाओ को आर्थिक शोषण से भी मुक्ति मिलेगी। मरीजों को जांच कराने के लिए सात सौ रुपये से लेकर 15 सौ रुपये तक खर्च करने पड़ते थे।