रक्सौल।( vor desk )।होली रंगो का पर्व है।रंगो का यह पर्व रक्सौल में नटराज सेवा संगम की रंग बिरंगी होली के बिना पूर्ण नही होती।जब तक सफेद कुर्ता पायजामा धारण करने के साथ केसरिया सफा बांधे ढोल मेंजीरे वाली टोली अबीर के समय नगर भ्रमण नहीं करती,यहां होली अधूरी मानी जाती है।
सच कहें तो मूल्य ,परम्परा ,संस्कृति और साझा विरासत को उत्तर बिहार की सबसे पुरानी सामाजिक संस्था ‘नटराज सेवा संगम ‘ आज भी जीवंत किये हुए है। होली के अवसर पर संस्था द्वारा इस बार राधा कृष्ण की झाँकी निकाली गई।हालाकि, यह झांकी पूर्व की अपेक्षा सादगी पूर्ण व नृत्य गीत युक्त रहा।झांकी प्रेम और मिल जुल कर रहने का का संदेश देता दिखा । संस्कृति प्रेमी और समाजसेवियों का जत्था रंग -अबीर के साथ झूम रहा था।
इसमें संस्था के अध्यक्ष सह नप के पूर्व सभापति ओमप्रकाश गुप्ता ,सचिव मदन कुमार गुप्ता समेत पेंटर पन्नालाल प्रसाद,जगदीश प्रसाद ,बैजू जैसवाल ,अजय कुमार,सुशील सरि,सुरेश कुमार,मोहन भाई ,,धीरज कुमार गुप्ता,,सन्नी कुमार,सूरज कुमार,राजेश आर्या,आदि शामिल थे।’मैं तेरे साथ हुँ ,जहाँ तू है ‘,’होली आई रे कन्हाई’, रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे ‘, ‘होली आई प्यारी प्यारी..भर पिचकारी ‘जैसे सुमधुर गाने के बोल माहौल में मधु घोल रहे थे। अद्भुत यह दृश्य सरहदी होली को जानदार बना गया।यूं ,भी जब तक यह झांकी रक्सौल शहर की परिक्रमा नहीं करती गुलाल का रस्म अधूरा रहता है। वर्ष 1972 में सस्था बनी थी ,तभी से यह परम्परा चली आ रही है। सबसे अहम् तो यह है कि संस्था के सभी सदस्य व्यवसायी हैं। समय निकाल समाजसेवा और कला ,संस्कृति को जीवंतता देते है। हालाकि ,कभी रक्सौल में प्रतिस्पर्धी दौड़ थी। वीणा ,वंदना कला परिसद के बीच होड़ थी। मगर जागृति ,संरक्षण के अलावे युवा भागीदारी के आभाव में यह पुरानी बात हो गई ,बावजूद,नटराज सेवा संगम आज भी कला,संस्कृति,परंपरा और मूल्यों के संरक्षण की पहल में सक्रिय है। वजूद कायम है। आखिर कुछ तो है कि हस्ती मिटती नहीं।