रक्सौल।(vor desk)।छठ पर्व पर भी अति प्रदूषित सरिसवा नदी काली व मैली रह गई।खरना यानी मंगलवार को भी नेपाल की ओर से स्वच्छ जल प्रवाहित नही हो सका।पहले करीब सात दिन पहले साफ जल प्रवाहित करने की पहल हो जाती थी।लेकिन,बुधवार को सझीया घाट है,पर ,साफ जल प्रवाहित होने के आसार छीन हो गए हैं। इस कारण व्रतियों की चिंता बढ़ गई है कि छठ कैसे होगा?अर्ध्य कैसे दिया जाएगा?
छठ व्रती किरण देवी,रीना देवी,चंचल सिंह ने सवाल खड़े किए कि -नाला बने इस नदी के जल में छठ कैसे करें?क्या यह व्रत के लायक है?जिस जल को जानवर भी नही पीते।बदबू ऐसे,की खड़े नही हो सकते।आखिर अर्ध्य कैसे देंगे?नदी में स्नान के लिए डुबकी कैसे लगाएंगे?बता दे कि इस स्थिति के बाद व्रती घर अथवा दूसरी जगह पर छठ करने की योजना में हैं।
जानकार बताते हैं कि वीरगंज में औधोगिकरण के कारण करीब तीन दशक से यह नदी प्रदूषित है।हर बार करीब बीस पच्चीस दिन पहले से ही नेपाली फैक्ट्रियों पर कड़ाई होती थी।जिससे कूड़ा,कचरा,रसायन प्रवाहित करने की प्रक्रिया बन्द हो जाती थी।लेकिन,दुर्भाग्य से इस बार ऐसा नही हुआ।जबकि, जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक ने महावाणिज्य दूतावास के जरिये नेपाली प्रशासन को पत्र लिख कर छठ के मद्देनजर गंदे जल का प्रवाह रोकने का अनुरोध किया था।ऐसे में इतिहास में पहली बार अब प्रदूषित जल में ही छठ व्रती अर्ध्य देने को बाध्य होंगे।इसको ले कर पूर्व नगर पार्षद शबनम आरा ने प्रशासन व जनप्रतिनिधियो को आड़े हाथों लेते हुए लापरवाही के लिए कड़ी निंदा की है।
क्षेत्र में इस कारण गहरी नाराजगी और क्षोभ है।क्योंकि,हर बार पर्व के समय यह मसला उछलता है,पानी साफ होती है,फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है।आश्वासन व मुलल्मो व छलावा के अलावे रक्सौल को कुछ भी नसीब नहीं हुआ।नगर परिषद ने यहां वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए डीपीआर बनाने की पहल की है।लेकिन, हकीकत यह है कि आज तक कोई ईमानदार कोशिश नही हुई।यही नही नगर परिषद भी कूड़ा कचरा से नदी को पाट कर नाले की शक्ल देने में कोई कसर नही रख छोड़ा है।
इसको ले कर सरिसवा नदी बचाओ आंदोलन भी चलता आ रहा है।लेकिन,तमाम दावे और पहल यहां इस बार बेअसर साबित हुआ है।
बता दे कि नेपाल के बारा जिला के राम बाण से निकलने वाली सरिसवा नदी रक्सौल से गुजररते हुए सिकरहना नदी होते गंगा में मिल जाती है।यह नदी जहरीले तत्वो-रसायन,कूड़ा कचरों से काफी प्रदूषित है।इससे न सिंचाई होती है,न मानवीय उपयोग किया जाता है,पशु भी जल नही पीते।जलचर कब के मर चुके हैं।प्रदुषण मुक्ति के लिए लगातार आवाज उठती रही है,लेकिन,निदान कोसो दूर दिखता है।सबसे ज्यादा परेशानी छठ व्रतियों को होता है।क्योंकि,सरिसवा नदी किनारे रक्सौल शहर के 80 प्रतिशत से भी ज्यादा छठ व्रती पूजा करते है। यहां की प्रमुख घाट आश्रम रोड छठिया घाट, भखुवा ब्रम्ह स्थान, कस्टम पुल स्थित घाट, बाबा मठिया नागा रोड, त्रिलोकी मंदिर घाट है। सबसे ज्यादा भीड़ आश्रम रोड छठिया घाट, बाबा मठिया छठ घाट पर होती है। यह सभी घाट सरिसवा नदी के किनारे है।
इस बार भी छठ पूजा को देखते हुए एसडीओ आरती ने पूर्वी चंपारण के जिलाधिकारी को पत्र लिखा । इस पर पहल करते हुए जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक ने महावाणिज्य दूतावास के जरिये मुख्य जिलाधिकारी (पर्सा) नेपाल को लिखित पत्र के माध्यम से आग्रह किया कि छठ पर्व के पावन अवसर पर सरिसवा नदी में नेपाल द्वारा दूषित जल के बहाव को रोकने की पहल की जाए।
इस पत्र के बावजूद गम्भीरता नही दिखी।ऐसे में अधिकारियो के साथ जन प्रतिनिधियो के प्रति काफी रोष दिख रहा है।
इस मुद्दे पर सीमा जागरण मंच के प्रदेश अध्यक्ष महेश अग्रवाल ने आरोप किया कि यह शासन प्रशासन की विफलता है। हर बार दीपावली के पहले इसकी पहल होती थी।इस बार लापरवाही हुई।यह काफी शर्मनाक है कि नाले रूपी नदी में छठ व्रती इतिहास में पहली बार अर्ध्य को विवश होंगे।
वे कहते हैं कि इसके पीछे विदेशी शक्तियों की साजिश हो सकती है,जो,इसी छोटे छोटे मुद्दे पर रिश्ता बिगाड़ने के प्रयास में हैं।ऐसे तत्वो को चिन्हित कर सतर्कता बरतने की जरूरत है।
उधर,सिरिसिया नदी एवं बीरगंज प्रदूषण मुक्त अभियान के सचिव बृजेश्वर प्रसाद का आरोप है कि डेढ़ दशक पहले प्रदूषण फैलाने वाले पर्सा-बारा के 48 फैक्ट्रियों को चिन्हित किया गया था।यदि ठोस कार्रवाई हुई होती,तो यह नौबत नही आती।उन्होंने बताया कि पर्सा-बारा के दो दर्जन घाटों पर इस नदी के किनारे छठ पूजा होती है,दुःखद है कि सभी परेशान हैं।
उधर,पर्सा जिला के सहायक जिलाधिकारी भीम कांत पौडेल ने कहा कि प्रदूषण रोकने की पहल की गई है।डाबर नेपाल समेत अन्य फैक्ट्रियों ने केमिकल -कचरा उत्सर्जन रोक दिया है।अन्य की जांच की जा रही है।