रक्सौल।(vor desk )।प्रखण्ड के लक्ष्मीपुर-लक्ष्मणवा की एक महिला की सुनी गोद में संतान रूपी एक फूल खिला।परिजन खुशियों से सराबोर हो गए,लेकिन घण्टों बाद भी शिशु के शरीर में कोई हरक्कत नही हुआ।करुण-क्रंदन शुरू हो गया।सबने इसे होनी समझ अपने भाग्य को कोसने लगे।शिशु के जीवित होने की आशा टूट गई।इसकी खबर पीएचसी में कार्यरत डॉक्टर मुराद आलम को मिली,उन्होंने अपना चिकित्सकीय तरकीब अपनाया और एकाएक शिशु के शरीर में स्पंदन हुई।आशाओं के फूल खिले और डॉक्टरों के प्रयास से शिशु के जीवन का लौ दीपावली की रोशनियों के बीच जगमगा उठा।अस्पताल में खुशियों के दीप जलाने लगे और सुनी होती गोद में संतान रूपी सुनहरा फूल खिल उठा।
मिली जानकारी के मुताबिक,गर्भवती रिंकू देवी (27 वर्ष )को प्रसव पीड़ा के बीच दीपावली के दिन रक्सौल पीएचसी में भर्ती कराया गया।जहां,लेबर रूम की जीएनएम फिरदौस अनवर की देख रेख में उसने 2590 ग्राम के शिशु को जन्म दिया।लेकिन,चंद पलो में ही खुशियां काफूर हो गई।क्योंकि,शिशु अचेत स्थिति में पाया गया।कोई हरक्कत नही होने की वजह से उसे मृत मान कर परिजन रोने धोने लगे।इस बीच कंट्रोल रूम में मौजूद राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम से जुड़े डॉ मुराद आलम ने सूचना मिलते ही शिशु की जांच की।जिंसमे शिशु के ह्रदय में स्पंदन पाया ।इसके तुरंत बाद इलाज शुरू किया गया।करीब आधे घण्टे में प्रयास के बाद शिशु हरकत में आ गया और रोने लगा।इसके बाद शिशु की मां के साथ परिजनों के खुशी का ठिकाना नही था।
फ़ोटो:शिशु के माता पिता
शिशु के पिता झुनाल यादव ने चिकित्सकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि मेरे लिए यह बच्चे के पुनर्जन्म जैसी स्थिति है।दीपावली के दिन मेरा घर रौशन हुआ।झुनाल ने बताया कि शादी के बाद 7 साल से वे संतान के लिए इंतजार कर रहे थे।इस बाबत पीएचसी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ एसके सिह ने बताया कि ऐसा मामला कभी कभार होता है।इस दुर्लभ स्थिती को मेडिकल की भाषा मे सीवियर फीटल डिस्ट्रेस कहा जाता है।सही समय पर मेडिकल ट्रीटमेंट से शिशु की जान बच गई और परिजनों की खुशियां महफूज रह गई।