रक्सौल।(vor desk )।भारत के स्वाधीनता आंदोलन में चंपारण की प्रमुख भूमिका रही। चंपारण सत्याग्रह चंपारण के किसानों को अंग्रेजों के शोषण से मुक्त कराने के लिए आरंभ हुआ और यहीं से यह चिंगारी अंग्रेजी राज के खिलाफ पूरे देश में फैली। इसी चंपारण की भूमि ने गांधी को महात्मा बनाया और इस आंदोलन में रक्सौल की मिट्टी का भी योगदान रहा है।
आज उनकी 73वीं पुण्यतिथि पर इस विषय को पुनः पीएमओ एवं माननीय मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाते हुए शिक्षाविद डॉ. स्वयंभू शलभ ने कहा कि महात्मा गांधी जिन जिन स्थलों पर आए और जहां जहां प्रवास किया उन स्थलों को सरकार द्वारा गांधी सर्किट में जोड़ने की योजना बनाई गई लेकिन दुर्भाग्यवश रक्सौल इस योजना से अलग थलग पड़ा रहा। उनके तीन बार रक्सौल आगमन का ठीक से अध्ययन नहीं किया गया। रक्सौल का अपेक्षित विकास न हो पाने का यह भी एक कारण बना रहा।
डॉ. शलभ ने आगे कहा कि उपलब्ध आलेखों, संदर्भित पुस्तकों और इतिहासकारों व विज्ञों की राय के आलोक में महात्मा गांधी के रक्सौल आगमन का अध्ययन कर राष्ट्रीय गांधी विद्यालय और हरदिया कोठी को संरक्षित और विकसित किये जाने की आवश्यकता है। रक्सौल नगर में महात्मा गांधी स्मारक एवं द्वार बनाकर उनकी स्मृतियों को संरक्षित किया जाना जरूरी है। रक्सौल को गांधी सर्किट में जोड़कर इसे अपनी पहचान देना जरूरी है।
महात्मा गांधी के साथ रक्सौल के संदर्भों को समझने के लिए ‘फलेजरगंज’, ‘हरदिया कोठी’ और ‘रक्सौल बाजार’ को भी जोड़कर देखना होगा क्योंकि ‘रक्सौल’ नाम उस समय ज्यादा प्रचलन में नहीं था।
रक्सौल को गांधी सर्किट से अलग रखना न सिर्फ इस ऐतिहासिक भूमि के प्रति अन्याय होगा बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी चंपारण सत्याग्रह के इतिहास को समग्रता से नहीं समझ पाएंगी।
चंपारण सत्याग्रह के समय 6 अगस्त 1917 को बेतिया से जाँच समिति के सदस्य तथा महात्मा गांधी हरदिया कोठी में तहकीकात के लिए आये। दूसरी बार 9 दिसंबर 1920 को महात्मा गांधी रक्सौल आये थे। डा. राजेन्द्र प्रसाद, मजरूल हक और शौकत अली भी उनके साथ थे। यहां हरि प्रसाद जालान की पथारी में उन्होंने भाषण दिया था जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय खोलने का आह्वान भी किया। उस सभा में रक्सौल के साथ सीमावर्ती क्षेत्र के लोग भी शामिल हुए। उन लोगों ने आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। उस आह्वान पर 1921 में रक्सौल के पुराने एक्सचेंज रोड में राष्ट्रीय गांधी विद्यालय की स्थापना हुई जो स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में क्रांतिकारियों की शरणस्थली भी बनी। रक्सौल की तीसरी यात्रा महात्मा गांधी ने 24 जनवरी 1927 को की थी।
1907 में हडसन साहब के मैनेजर फलेजर साहब ने रक्सौल नगर की नींव डाली थी और इस क्षेत्र के सुनियोजित विस्तार के लिए लोगों को प्रेरित किया था। इसलिए इस नगर को ‘फलेजरगंज’ के नाम से भी जाना गया। बाद में मैनेजर जे.पी.एडवर्ड ने भी इस नगर के विस्तार में दिलचस्पी ली जिनका निवास स्थान इस क्षेत्र में ‘हरदिया कोठी’ बना। 17 एवं 21 मई 1917 को महात्मा गांधी द्वारा जे.पी.एडवर्ड को लिखे पत्र भी रक्सौल के लोगों की समस्याओं पर महात्मा गांधी की चिंता को दर्शाते हैं।
ज्ञातव्य है कि हरदिया कोठी जहां महात्मा गांधी आये और गांधी विद्यालय जिसकी स्थापना महात्मा गांधी के आह्वान पर हुई इन दोनों स्थलों की ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित करने और रक्सौल को गांधी सर्किट से जोड़कर विकसित किये जाने के डॉ. शलभ के प्रस्ताव के आलोक में गत 1 अक्टूबर 2019 को मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा कैबिनेट सचिव एवं शिक्षा सचिव को तथा गत 16 अगस्त 2018 एवं 11 जनवरी 2019 को पर्यटन विभाग को भेजा गया था। इससे पूर्व मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस प्रस्ताव को गत 10 अप्रैल 2018 एवं 8 जून 2018 को शिक्षा विभाग को प्रेषित किया था।
वहीं इस विषय में पीएमओ ने ‘सत्याग्रह शताब्दी समारोह’ के पूर्व गत 4 अप्रैल 2018 को डॉ. शलभ की अपील के आलोक में डीएम मोतिहारी को भी मेल भेजा था।
इन प्रयासों के बीच गत 12 जून 2018 को पटना में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी जी से मुलाकात कर डॉ. शलभ ने महात्मा गांधी के तीन बार रक्सौल आगमन, उनके आह्वान पर रक्सौल में गांधी विद्यालय की स्थापना और हरदिया कोठी से जुड़े प्रपत्रों और चित्रों को उपलब्ध कराने के साथ ‘सत्याग्रह शताब्दी समारोह’ में रक्सौल की अनदेखी किये जाने का विषय भी उठाया था।