Sunday, November 24

केपी ओली सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति विधा भंडारी ने भंग की संसद, मचा सियासी बवाल

नए जनादेश के लिए संसद का हुआ विघटन,वैशाख 17 व 27 गते को होगा चुनाव !

काठमांडू।( vor desk )।
नेपाल में एक बार फिर सियासी घमासान बढ़ता नजर आ रहा है।सतारुढ़ नेकपा के अंदर से ही विरोध झेल रहे नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने रविवार को अचानक मंत्रिमंडल की बैठक में संसद के मौजूदा सदन को भंग करने का फैसला किया। मंत्रिमंडल की तरफ से सदन को भंग करने की औपचारिक सिफारिश राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी को की गई, जिसे उन्होंने मंजूर कर लिया है। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि नेपाल में अप्रैल-मई में संसदीय चुनाव करवाए जा सकते हैं।

संविधान में संसद भंग करने का प्रावधान नहीं,उठे सवाल:
बड़ी बात यह है कि नेपाल के संविधान में ही सदन को भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में अन्य राजनीतिक दल सरकार के इस फैसले को अदालत में भी चुनौती दे सकते हैं। नेपाल की राष्ट्रपति ने ओली सरकार के इस असवैंधानिक सलाह को मंजूर भी कर लिया है। ऐसे में आशंका है कि विरोधी दल कोर्ट का रूख कर सकते हैं।

पीएम ओली पर था अध्यादेश वापस लेने का दबाव:
ओली की कैबिनेट में ऊर्जा मंत्री बरशमैन पुन ने बताया कि आज की कैबिनेट की बैठक में संसद को भंग करने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश भेजने का फैसला किया गया है। बता दें कि ओली पर संवैधानिक परिषद अधिनियम से संबंधित एक अध्यादेश को वापस लेने का दबाव था। मंगलवार को जारी इस अध्यादेश को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने भी मंजूरी दे दी थी।

अचानक हुआ कैबिनेट का फैसला
रविवार को जब ओली कैबिनेट की आपात बैठक सुबह 10 बजे बुलाई गई थी, तो काफी हद तक उम्मीद की जा रही थी कि यह अध्यादेश को बदलने की सिफारिश करेगी। लेकिन इसके बजाय, मंत्रिमंडल ने हाउस विघटन की सिफारिश की।


राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा जारी सूचना अनुसार नेपाल की संविधान धारा 76 उपधारा 1 और 7 तथा धारा 85 और संसदीय प्रणाली का आधारभूत मर्म एवं मूल्य–मान्यता के अनुसार संसद् विघटन किया गया है । मन्त्रिपरिषद् सिफारिश अनुसार राष्ट्रपति भण्डारी ने 2078 वैशाख 17 गते को प्रथम चरण का और 27 गते को द्वितीय चरण के निर्वाचन भी घोषणा की है।

ओली कैबिनेट के फैसले का विरोध:
ओली के खुद की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने कैबिनेट के इस फैसले का विरोध किया है। पार्टी के प्रवक्ता नारायणजी श्रेष्ठ ने कहा कि यह निर्णय जल्दबाजी में किया गया है क्योंकि आज सुबह कैबिनेट की बैठक में सभी मंत्री उपस्थित नहीं थे। यह लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है और राष्ट्र को पीछे ले जाएगा। इसे लागू नहीं किया जा सकता।

स्मरणीय है, सत्ताधारी दल नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (नेकपा) के भीतर लम्बे समय से आन्तरिक संघर्ष चलता आ रहा था । विशेषतः कार्यकार्य अध्यक्ष एवं पूर्व प्रधानमन्त्री पुष्पकमल दाहाल प्रचण्ड और वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रधानमन्त्री माधव कुमार नेपाल का कहना था कि ओली नेतृत्व में निर्मित वर्तमान सरकार पूर्ण असफल हो चुका है, इसीलिए ओली को पार्टी अध्यक्ष एवं प्रधानमन्त्री पद से इस्तिफा देना चाहिए । लेकिन प्रधानमन्त्री ओली इस बात को अस्वीकार करते आ रहे थे । प्रधानमन्त्री ओली के प्रति असन्तुष्ट नेकपा पक्षधर नेता ओली को पार्टी अनुशासन की कारवाही करने की तैयारी में भी लगे हैं ।

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