कोरेण्टाईन पूरा होने के बाद भी घर जाने के इंतजार में है कोरोना आपदा राहत केंद्र पर रह रहे मुजफ्फरपुर के दस युवक
रक्सौल।(vor desk )।इंडो नेपाल बॉर्डर सील होने के बावजूद नेपाल की राजधानी काठमांडू से रक्सौल पहुंचने पर 12 अप्रैल को कोरेनटाइन किये गए दस युवक परेशान हैं ।उनके 14 दिन की क्वरेंटाइन की अवधि पूर्ण हो गई है।बावजूद उन्हें घर भेजने की कोई व्यवस्था नही हुई।
इसमे एक युवक नीरज के दादी का निधन हो गया था।सुबकते हुए नीरज बताता है कि मेरी दादी का निधन हो गया,लेकिन,हम अंत्येष्टि में नही जा सके।अब श्राद्ध कर्म है।उसमें घर जाना है।लेकिन कोई नही सुन रहा।
उसका कहना है कि प्रशासन अनुमति दे तो हम पैदल ही चले जायेंगे।मुझे मेरी दादी बहुत मानती थी।मुझे जीवन भर का अफसोस हो जाएगा,यदि मैं नही शामिल हुआ।उसने कहा कि दादी के निधन पर भी अनुमति मांगी,लेकिन,नही मिली।अब मुझे घर भेजा जाए।
बता दे कि रक्सौल के आईसीपी बाइपास एरिया में काठमांडू से पैदल चल कर आने के बाद सीमा पार कर पहुँचे दस लोगों को पुलिस व एसएसबी ने 12 अप्रैल को नियंत्रण में लिया था।
सभी दस युवक को रक्सौल के हजारीमल हाई स्कूल में कोरेनटाइन किया गया।इस अवधि में उनके सेहत में कोई समस्या नही दिखी।रक्सौल पीएचसी के चिकित्सक डॉ मुराद आलम ने इनकी जांच कर मेडिकल रिपोर्ट दे दिया है।मतलब यह कि उन्हें जाने दिया जा सकता है।लेकिन,ऐसे किसी प्रबंध की पहल नही दिख रही, जिससे कि उन्हें घर भेजा जा सके।
साहेबगंज के जितेंद्र राम, अनीश,अनिल,सुनील,इम्तेयाज,मोहम्मद इरशाद, आदि युवकों का कहना है कि मधेपुरा से 11 लोगों को रक्सौल भेजा जा सकता है।तो हम दस लोगों को बगल के जिलों में क्यों नही भेजा जा सकता।हम सभी मुजफ्फरपुर के साहेबगंज के हैं।प्रशासन हमे भेजने का प्रबंध करे।
उनका कहना था कि हम चार दिन पैदल भूखे प्यासे चल कर रक्सौल पहुँचे।काठमांडू में रोजी रोटी छीन गई।यहां हम फंस गए।हमारी कोई सुनने वाला नही है।उन्होंने बताया कि हम मजदूरी करते थे।अब लॉक डाउन मे हम परेशान हो कर रह गए हैं ।
हालांकि,उन्होंने कहा कि राहत केंद्र पर कोई दिक्कत नही है।अच्छे से खाना पीना मिल रहा है।
वहीं, कैम्प प्रभारी मृत्युंजय मृणाल का कहना है कि वरीय अधिकारियों को सूचित कर दिया गया है।निर्देश की प्रतीक्षा की जा रही है।