
रक्सौल।(Vor desk) ।बुद्ध कालीन प्राचीन प्रतिमा मिलने से सीमावर्ती क्षेत्र में बुद्ध से जुड़े ऐतिहासिक अवशेष को लेकर एकबार फिर चर्चा शुरू हो गयी है। इस इलाके में के कण- कण में बुद्ध विराजमान है, ऐसी कीवदंति है।इसका जीता जागता सुबूत तब मिला, जब रक्सौल के जिला पार्षद रहे इंद्रासन प्रसाद के पिता इंदु साह नेपाल से निकलनेवाली धूतहा नदी किनारे भेलाही स्थित अपने खेत पर गए तो खेत में ही लावारिस स्थिति में गौतम बुद्ध के काले संगमरमर की ध्यानस्थ मुद्रा प्राचीन मूर्ति मिले है।इससे सीमावर्ती क्षेत्र रक्सौल और आस पास के एरिया के बौद्ध कालीन जुड़ाव के संकेत भी मिले हैं।पूर्व में भी इस इलाके से मिट्टी के बर्तन और पुराने सिक्के मिल चुके हैं।मिली जानकारी के मुताबिक,बुधवार को यह प्रतिमा एक खेत से मिली।जिसको देखने के लिए ग्रामीणों की भीड़ उमड़ गई।यह प्रतिमा काले संगमरमर की बताई जा रही है,जिसमे बुद्ध ध्यान की मुद्रा में है और पद्मासन या पूर्ण कमल मुद्रा में बैठें हुए है,दोनों हाथ गोद में रखें हुए हैं। यह मुद्रा ध्यानमग्न बुद्ध की विशिष्ट मुद्रा है। विशेषज्ञों का कहना है काले बुद्ध की मूर्तियाँ अक्सर अज्ञानता पर काबू पाने और ज्ञान प्राप्ति का प्रतीक होती हैं। मूर्ति के माथे पर एक कलश या तीसरी आँख है, जो चेतना के उच्च स्तर का प्रतीक है।वहीं,यह प्रतिमा शिल्प कौशल का भी उदाहरण है,जो कुशल कारीगरों द्वारा हाथ से बनाई गई बताई जा रही है।इस बारे में पूर्व जिला परिषद सदस्य इंद्रासन गुप्ता ने बताया कि कि बुद्ध प्रतिमा मिली है।इसे सुरक्षित रखा गया है ।पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के आने का इंतजार किया जा रहा है।ताकि,पता चले कि प्रतिमा कब की है और यहां कैसे आई।इधर,अंबेडकर ज्ञान मंच के संस्थापक मुनेश राम ने इस प्रतिमा को संरक्षित कर बौद्ध मंदिर विकसित करने पर जोर दिया है।साथ ही कहा है कि पुरातत्व विभाग इस बौद्ध कालीन बुद्ध मूर्ति के बारे में शोध करे,क्योंकि,यहां क्षेत्र का चप्पा चप्पा बुद्ध से जुड़ा है।ऐसा हुआ तो यहां का इतिहास नए सिरे से सामने आएगा।फिलहाल,प्रतिमा को ले कर कौतूहल और अटकलों का बाजार गर्म है।