● केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने प्रस्ताव को स्वदेश दर्शन डिवीजन समेत बिहार सरकार के पर्यटन विभाग को भेजा
रक्सौल।(vor desk)।सीतामढ़ी, जनकपुर धाम, वाल्मीकिनगर और अयोध्या के साथ रक्सौल और वीरगंज को रामायण सर्किट से जोड़कर विश्वस्तरीय धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किये जाने को लेकर प्रो. (डॉ.) स्वयंभू शलभ द्वारा पीएमओ को एक प्रस्ताव भेजा गया है। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने उक्त प्रस्ताव को स्वदेश दर्शन डिवीजन समेत बिहार सरकार के पर्यटन विभाग को आवश्यक कार्रवाई हेतु भेजा है। इस संदर्भ में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के सहायक निदेशक नीरज शरण ने कहा है कि पर्यटन के विकास में राज्य सरकार का भी प्रमुख दायित्व होता है।
पीएमओ को भेजे प्रस्ताव में डॉ. शलभ ने बताया है कि भारत नेपाल सीमा पर बसे जुड़वाँ नगर रक्सौल और वीरगंज का सांस्कृतिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व है। ये दोनों नगर रामायण सर्किट से जुड़कर विश्वस्तरीय धार्मिक सांस्कृतिक केंद्र बनें, इस दिशा में केंद्र सरकार द्वारा पहल किये जाने की आवश्यकता है।
आगे बताया है कि नेपाल की आर्थिक राजधानी कहलाने वाला वीरगंज और अंतरराष्ट्रीय महत्व का शहर कहलाने वाला रक्सौल, दोनों ही सीमाई शहरों में उद्योग, व्यापार और पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। नेपाल के रास्ते विभिन्न देशों से भारत आने वाले पर्यटक सबसे पहले इसी रक्सौल वीरगंज सीमा पर आकर भारत दर्शन करते हैं। दिल्ली और काठमांडू को जोड़ने वाला मुख्य मार्ग रक्सौल-वीरगंज सीमा से होकर गुजरता है। नेपाल के मुख्य द्वार पर अवस्थित इन दोनों नगरों को रामायण सर्किट से जोड़कर इस सीमाई क्षेत्र की संभावनाओं को नया आकाश देने की आवश्यकता है।
रामायण सर्किट से जोड़े जाने के मौलिक कारणों पर प्रकाश डालते हुए डॉ. शलभ ने बताया है कि माता सीता की जन्म स्थली पुनौरा धाम, सीतामढ़ी (बिहार) रक्सौल से मात्र 80 किमी की दूरी पर स्थित है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद जन आकांक्षा है कि सीतामढ़ी में माता सीता का भी भव्य मंदिर बने। माता सीता का मायका जनकपुरधाम (नेपाल) भी यहाँ से 160 किमी दूरी पर है। इस कड़ी में वाल्मीकिनगर स्थित महर्षि वाल्मीकि का आश्रम रक्सौल से 160 किमी की दूरी पर स्थित है। यहीं लव कुश का जन्म हुआ। महर्षि वाल्मिकी ने ‘रामायण’ की रचना भी यहीं की थी। माता सीता के जीवन में सीतामढ़ी, जनकपुर धाम, वाल्मीकिनगर और अयोध्या इन सभी स्थलों का महत्व है। ये सभी स्थल रक्सौल से सड़क और रेल मार्ग से जुड़े हुये हैं।
रक्सौल और वीरगंज को रामायण सर्किट में जोड़कर श्री राम एवं माता सीता के जीवन से जुड़े इन सभी स्थलों को धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किये जाने की मांग रखी गई है।
रक्सौल बीरगंज किस ऐतिहासिक साक्ष्य के तौर पर रामायण सर्किट से जोड़ा जा सकता है।जनकपुर और बालमिकीनगर से इसके कोई कनेक्शन नहीं है।बेवजह बौद्ध सर्किट से जोड़ने की मुहिम को कमजोर करने की साजिश हो रही है।रक्सौल अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकीय शहर के रूप में विकसित हो इसके लिए बौद्ध सर्किट की असीम संभावनाएं और दर्जनों ऐतिहासिक साक्ष्य आज भी मौजूद है।वह चाहे काठमांडू के स्वयंभू बुद्ध मंदिर हो या बिरगंज के बौद्ध स्तूप,आदापुर के चैनपुर बौद्ध स्तूप या केसरिया के विश्वस्तरीय बौद्ध स्तूप,छौड़ादानों के बुद्धवाहा टीला,अरेराज लौरिया बौद्ध स्तूप,रामपुरवा, लौरिया बौद्ध स्तूप,अशोक स्तंभ, यूपी के बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल जैसे कई साक्ष्य मौजूद है जिसे पुरातात्विक विभाग खुदाई करे तो कई बुद्ध और अशोक कालीन साक्ष्य मिलेंगे।बावजूद,कुछ लोग रक्सौल को अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर देखना नही चाहते है।बेवजह कभी गांधी तो कभी रामायण सर्किट का हौव्वा खड़ा कर इसे विवादास्पद बनाने पर तुले है,हालांकि इनके साजिश कभी सफल नहीं होंगे।केंद्र व राज्य सरकार इस दिशा में आगे बढ़ चुकी है।