रक्सौल।(vor desk)। बेतरकीब और अव्यवस्थित मेन रोड और ट्रैफिक व्यवस्था के आभाव में जाम से जूझ रहे रक्सौल शहर की नई मुसीबत मैत्री पुल पर एसएसबी चेक पोस्ट पर जांच से और बढ़ गई है।पर्व त्यौहार के मौके पर जाम त्रासदी से व्यापार पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है।नियम से मैत्री पुल पर जांच में जुटी एस एस बी टीम को भी ख्याल रखना चाहिए कि जाम न लगे।लेकिन,ऐसा हो नही रहा।ऐसे में रक्सौल बाजार में नेपाली ग्राहक भी आने से हिचकने लगे है।वहीं,जाम के जाल से लोगों की परेशानी काफी बढ़ गई है।
शनिवार नेपाल में छूटी का दिन रहता है। बीरगंज से ग्राहक बड़ी संख्या में आते हैं।जांच प्रक्रिया से जाम का कहर इस कदर हुआ की एक महिला प्रसव पीड़ा से छट पटाने लगी।लेकिन,ना तो राहगीरों को कोई फर्क पड़ा और ना ही सुरक्षा एजेंसियों को।यह मामला शाम करीब4बजे का है।दर्द से तड़प रही उक्त महिला पर जब स्वच्छ रक्सौल के अध्यक्ष रणजीत सिंह की नजर पड़ी,तो,पहले उन्होंने मैत्री पुल के पास कस्टम एरिया से खुद जाम हटाने की कोशिश की।लेकिन,बात नही बनी।जाम इस कदर था कि डेंग बढ़ाना मुश्किल था ।इसके बाद उन्होंने एंबुलेंस को कॉल किया और खुद गांधी गिरी पर उतर आए।
उन्होंने फूल माला खरीदी और अपने साथियों के साथ नेपाल से आने जाने वाले राहगीरों और वाहन चालकों को फूल माला पहनाना शुरू किया और आग्रह किया कि वे ट्रैफिक रूल का पालन करें।वीरगंज में जब ट्रैफिक रूल का पालन किया जाता है,तो रक्सौल में क्यों बेतरकीब ढंग से चलते हैं?इस पहल के बाद हालात में सुधार हुआ और काफी हद तक ट्रैफिक कंट्रोल की स्थिति बनी।सड़क पर आवाजाही आसान हुई और एंबुलेंस पर उक्त महिला को अस्पताल भेजा जा सका।यह वाक्या धन्यवाद देने का हो सकता है,लेकिन,सवाल यह उठा कि रोज रोज यह गांधी गिरी कौन करे?कब तक?
रेलवे क्रासिंग का घंटो बंद रहना और लाइट ओवर ब्रिज के दोनो ओर सुरक्षा कर्मी नही रहने से मुसीबत बढ़ जाती है।
बताते हैं की कस्टम से इंडियन ऑयल तक मोटरसाइकिल, ई रिक्शा, टेम्पू चलाने वाले, रोड़ पर गाड़ी खडी कर पैसा वसूल करने वालों के कारण जाम लग जाता है और जीवन रक्षक एम्बुलेंस भी इस जाम में घण्टों फसी रहती है।
स्वच्छ रक्सौल के रणजीत सिंह का कहना है कि प्रसव पीड़ा से परेशान एक महिला की मदद भर से त्रासदी खत्म नही होने वाली।
अब इसके खिलाफ लगातार अभियान चलाने की जरूरत है । जाम लगाने, ग़लत दिशा मे गाड़ी चलाने वालों को फूल माला पहनाकर स्वागत किया जा रहा है।पुलिस, एस एस बी और रेल पुलिस को भी अपनी अपनी ड्यूटी इमानदारी से निभाने की जरूरत है।
जाम मुक्ति अभियान में जुटे छोटन कुमार,अंशु खालसा ने कहा कि पीड़ित महिला की दुआ जरूर मिलेगी,लेकिन,उसे कुछ हो जाता तो क्या हम अपने को माफ कर पाते?इसकी चिंता कोई क्यों नही करता?सुरक्षा एजेंसी चुप क्यों है !
रक्सौल के मेन रोड में डिवाइडर बन गया है।नाका पुलिस सक्रिय हो गई है।लेकिन,जाम कम नही हो रही।स्कूली बच्चों से ले कर मरीज तक परेशान रहते हैं।खुद पुलिस प्रशासन भी।
डिवाइडर बनने के साथ ही बाटा चौक पर ट्रैफिक पोस्ट बनाने की योजना है।ट्रैफिक कंट्रोल के लिए लाइट सिस्टम की जरूरत है।पार्किंग के स्थाई अस्थाई व्यवस्था को जरूरत है।भेंडर जोन बनाने और सड़क को अतिक्रमण मुक्त कराने की जरूरत है।लेकिन,इसकी कोई पहल फिलहाल नही दिख रही।
रणजीत सिंह का कहना है कि स्वच्छ रक्सौल ने जाम हटाने के लिए ट्रैफिक व्यवस्था बहाल करने के लिए जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया था। उन्होंने इसके लिए रक्सौल प्रशासन और नगर परिषद को निर्देशित किया ।इस जन समस्या पर मीटिंग बुलाने की बात थी।लेकिन,आश्वासन का खेल खत्म नही हो रहा ।
रक्सौल चेंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव राज कुमार गुप्ता का कहना है कि जाम से व्यापार प्रभावित हो रहा है।जीना मुहाल है। रक्सौल में ओवरब्रिज नही बन सका।जाम खत्म करने की दिशा में ठोस पहल नही हो रही ,जो, रक्सौल के हक में ठीक नही।
उन्होंने कहा कि रेल एरिया में आरपीएफ अगर सक्रिय रहे तो जाम हट जाए।क्रॉसिंग दस मिनट से ज्यादा बन्द ना हो तो जाम कम हो जाए ।एसएसबी और पुलिस की सक्रियता से भी असर होगा।लेकिन,ट्रैफिक पुलिस जरूरी है।
अंत में सवाल यह है कि सुरक्षा एजेंसियों के ताल मेल के लिए पहल कौन करे?प्रसव पीड़ा से परेशान महिलाओ और मरीजों की सुध कौन ले?जाम में भूख से बिल बिलाते नन्हे मुन्ने स्कूली बच्चों की चिंता कौन करे? रक्सौल इस सवाल पर गंभीर नही है।यदि यही रहा तो हादसे जारी रहेंगे। रक्सौल बेचैन रहेगा।जाम का शिकार होने के लिए अगली बारी किसकी होगी,यह कोई नही जानता।लेकिन, हादसों को रोकने के लिए पुलिस प्रशासन के साथ व्यापारियों और आम लोगों को आगे आना ही होगा, वर्ना,रक्सौल को जाम नगर की छवि से मुक्ति नही मिलने वाली!