रक्सौल।(vor desk )।दो वर्ष पूर्व अक्टुबर 2016 में पाकिस्तानी गोलाबारी में जम्मू कश्मीर में शहीद हुए रक्सौल के माटी के सपूत व बीएसएफ के हेड कांस्टेबल जितेंद्र सिंह की माँ पार्वती देवी आम माताओं से अलग हैं।आंखों में छलकते आंसू व बेटे को खोने का दर्द छुपाते हुए शहादत की चर्चा पर उनकी आंखों में चमक आ जाती है।वे बोल पड़ती हैं-“बेटा हो तो जितेंद्र जैसा।मौत तो निश्चित है।पर शान की मौत सबको नसीब नही होती।मेरे बेटे ने तो दो दो माँ का कर्ज चुका दिया है।भारत माता के साथ ही मेरे दूध का कर्ज भी उसने चुकता कर दिया।हर माँ को हमारे जैसा ही साहस बटोरना चाहिए।बेटे को साहसी बनाना चाहिए।ताक़ि देश और समाज के काम आ सके। पाक के प्रतिं गुस्सा:72 वर्षीय पार्वती देवी की बूढ़ी काया में पाक के नाम पर उबाल आ जाता है।वे ललकारती हैं-1971 की तरह लड़ाई छेड देनी चाहिए।छिप छिप के लड़ाई क्यों?हमारा बच्चा सब शहीद हो रहा।अब हद हो गई।उसको छक्का छुड़ाना होगा।औकात बतानी होगी। माँ का दर्द:शहादत के बाद शहर के कौड़िहार स्थित अपनी बेटी अनिता सिंह के घर रह रहीं पार्वती देवी को दुःख है क़ि सरकार माँ के बारे में कुछ नही सोंचती।माँ ही तो डीएम और पीएम देती हैं।उन्हें कोई सहायता नही मिल सकी है।पीएम मोदी के बारे में वो कहती हैं।मोदी अच्छे हैं।काम भी अच्छा करते हैं।पर देखते हैं हमारे लिए वे क्या करते हैं। एक क्या सौ कुर्बान:पार्वती देवी कहती है क़ि अंग्रेजो द्वारा फांसी के बाद रो रही भगत सिंह की माँ से पूछा गया क़ि क्यों रोती हो?तो,उन्होंने कहा था क़ि मैं इसलिए रो रही हूं क़ि मुझे चार पांच बेटे क्यों नही थे!वे कहती है क़ि मैं तो अपने पोता -पोती और नाती -नतिनी को भी प्रेरित करती हूं क़ि वो देश के काम आए। दर्द:पार्वती देवी याद करती हैं क़ि मुफलिसी के दिन थे।पढ़ाई और नौकरी के लिए जेवरात बंधक रखना पड़ा था। कसक:उन्हें इस बात की कसक है क़ि पिछले होली में जब जितेंद्र घर आये थे ,तब अंतिम मुलाकात हुई थी।सितम्बर में आये, तब तीर्थ पर निकल गई थीं।दिसम्बर 2016 में आने का वायदा किया था।घर बनाना था।बेटी की शादियां करनी थी।कहा था क़ि जब रिटायर्ड हो कर आऊंगा ,तो,साथ मे रहूंगा।शहादत के पहले रात 11 बजे उन्होंने फोन किया था।मैं सो गई थी।बहन से कहा-माता का दर्शन करने गया,तो,माँ की याद आ गई।पर,अगले दिन शहादत की खबर आ गई।यह सालता है क़ि बेटे से न मुलाकात हुई,न,बात हो सकी।शायद जितेंद्र को उन्हें अंतिम घड़ी का अहसास था। वर्दी और पिस्टल से था लगाव-पार्वती देवी बताती है क़ि बचपन मे ही उसे वर्दी और पिस्टल के खिलौने से लगाव था।पिता लक्ष्मी सिंह से जिद कर उसने फौजी वर्दी खरीदाई।जब बड़ा हुआ ,तो,फौज की तैयारी ऐसी की क़ि वह छंट न सके।बीएसएफ में जॉइन करके ही दम लिया। वर्दी में खुशी:जितेंद्र 1990 में बीएसएफ जॉइन कर लिए।उनकी खुशी मेरी खुशी थी।मैट्रिक के बाद उनका नाम केसीटीसी मे इंटर में लिखा दिया था।पर मन नही लगा।जिद थी।तैयारी थी।खूब खाता।खूब दौड़ता। जॉइन किये तो वे दिल्ली थे।तब फोन नही था,घर पर चिट्ठी लिखते, तो,खूब रोती।पर हौसला देती।मैने कहा-वर्दी में आना!वे वर्दी में आए।खुशी से झूम उठी।माथा चूम लिया।दोनों खूब रोए। गर्व:पार्वती कहती है क़ि पिछले वर्ष शहीदों के नाम एक शाम कार्यक्रम में प्रशासन द्वारा मुझे सम्मानित किया गया।तब,आंसू छलक आये।जितेंद्र ने मरते मरते इज्जत प्रतिष्ठा दी।खानदान और देश का नाम रौशन कर गया।मैं चाहूँगी हर माँ को ऐसा ही बेटा मिले। कारगिल जीता :पार्वती देवी बताती है क़ि कारगिल के जंग में जितेंद्र ने खूब जंग लड़ा।विजय मिली।वे नौकरी से लौटना नही चाहता था।कहता-जब तक कर सकता हूँ,देश की सेवा करने दो।पर,फक्र है देश की सेवा करते शहीद हुए। फौजी बनो:अपने भगिना सूरज और भगिनी रश्मि को लड़ाई के किस्से सुनाते।खूब पढ़ने और फौजी बनने को प्रेरित करते थे।बहन अनिता सिंह बताती है क़ि उनकी प्रेरणा से ही सुरज एनसीसी जॉइन कर लिया था।वे अक्सर कहते क़ि मिलीट्री बैंड बजने के बाद लगता क़ि अभी युद्द हो जाए,तो,अच्छा। उपेक्षा :शहीद जितेंद्र के सम्मान में जितनी भी घोषणाएं हुई।उसमे किसी को जमीन नही मिली।न उनके पैतृक गावँ में स्मारक बना।न रक्सौल नगर परिषद ने स्मारक बनाया।शहीद जितेंद्र द्वार का सपना भी पूर्ण नही हुआ।स्वर्गीय लक्ष्मी सिंह के पुत्र शहीद जितेंद्र के परिजनो की कोई सुध लेने वाला नही दिखता।शहीद जी पत्नी विमला देवी इस उपेक्षा से आहत दिखती हैं ।उन्हें दो बेटी अर्चना उर्फ गुड़िया व प्रीति और एक बेटा रोहित है।वे सभी बीएसएफ में जा कर देश की सेवा करना चाहते हैं ।सांसद डॉ0 संजय जायसवाल नेे बच्चो को पढ़ाने की घोषणा की थी।लेकिन,यह अमल में नही आ सका।उनका मौजे स्थित घर भी आधा अधूरा पड़ा हुआ है। बता दे कि शहीद जितेंद्र सिंह का जन्म 1971में हुआ था। वे बीएसएफ 1990 में जॉइन किये। जबकि,उनकी शहादत अक्टुबर 2016 में हुई। उन्होंने मैट्रिक तक पढ़ाई की थी ।वे बीएसएफ हेडकांस्टेबल थे।29 अक्टुबर 2016 को राजकीय सम्मान के साथ उनके पैतृक गावँ में अंत्येष्टि हुई थी।