रक्सौल।( vor desk)।रक्सौल समेत सीमाइ क्षेत्र में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही चार दिनी छठ महापर्व शुक्रवार को संपन्न हो गया। बैंडबाजा और छठ गीत से घाट व मुहल्ले गुलजार हो रहे थे। कुछ व्रती दंडवत करते हुए घाट तक पहुंचे थे। परिवार के सदस्य सिर पर डाल-दउरा लेकर घाट तक पहुंचे थे। इस दौरान घाट पर छठी मइया के गीत भी गूंजते रहे। व्रतियों ने भक्तिभाव से भगवान सूर्य के उदय होने पर अर्घ्य देकर उनकी विधिवत आराधना की। व्रती पारंपरिक छठ गीतों मारबऊ रे सुगवा धनुष से, चलआ छठी माई के घाट, हे छठि माई, हे छठि माई, हम हई इहां परदेस में, कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए..होख न सूरजदेव सहाय …, बहंगी घाट पहुंचाए…, बाबा कांचे कांचे बंसवा कटाई दीह फरा फराई दीह…,पटना के घटवा पर बाजे बजनवा…, केलवा जे फरेले घवद से ओह पर सुगा मड़राए जैसे गीत गाते हुये घाटों पर पहुंचे। शहर के आश्रम रोड,बाबा मठिया,कौड़िहार ,सूर्य मंदिर,तुमड़िया टोला सहित विभिन्न जलाशयों, नदियों व तालाबों पर बने छठ घाटों पर व्रतधारी महिलाओं व पुरुषों के साथ काफी संख्या में परिवार के सदस्य, नाते-रिश्तेदार, पड़ोसी, जुटे थे।
सूर्योदय होने के साथ ही अर्घ्यदान का क्रम आरंभ हो गया था।इसके बाद व्रती व उनके स्वजनों ने भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर खुद के लिए और समाज व देश के हित की कामना की।
छठ पूजा का है बड़ा महत्व:
आस्था का महापर्व साल में दो बार कार्तिक माह एवं चैत्र माह में मनाया जाता है। छठ पूजा मुख्य रूप से भगवान सूर्य की उपासना है।इस माह में सूर्य मीन राशि में होते हैं तथा यह उच्च राशि की ओर अग्रसर होते हैं। यह व्रत करने वाले श्रद्धालु गंगा में, पवित्र नदी में, जलाशय में या घर में गंगा जल मिला कर स्नान करके व्रत का शुभारंभ करते हैं।यह पर्व नहाय खाय से आरंभ होकर चार दिनों तक चलता है।प्रात: कालीन सूर्य को अर्घ देकर इस व्रत का पारण होता है।