रक्सौल ।(vor desk)।’गिलैन बारे सिंड्रोम’ नामक गंभीर प्रकृति के रोग के शिकार हुए युवक को चिकित्सको ने गहन उपचार के बाद ठीक कर दिया गया है।
शहर के एसआरपी अस्पताल के डॉक्टरों की टीम ने युवक को ठीक कर सकुशल भेज दिया।जिससे युवक व उसके परिजनों में खुशी के आंसू छलक आये।
सोमवार को इस बाबत मीडिया को जानकारी देते हुये एसआपी के निदेशक डॉ सुजीत ने बताया कि विगत 9 फरवरी को रक्सौल के पलनवा थाना क्षेत्र के लौकरिया निवासी शिवपूजन पटेल के 17 वर्षीय पुत्र आमोद पटेल को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।उस समय उसके पैर चलने में असक्षम थे परिजनों ने आमोद को वार्ड में भर्ती कराया।उसके बाद कल होकर उसके हाथ-पैर दोनों काम करना बंद कर दिया था।आनन-फानन में उसे आईसीयू में लाया गया, उसके बाद उसकी स्थिति और बिगड़ती चली गयी। अचानक उसके छाती के मसल्स भी काम करना लगभग बन्द कर दिया, जिसके कारण सांस लेने में भी तकलीफ होने लगी।जिसके बाद चिकित्सकीय टीम ने चुनौती के रूप में लेते हुए ऊक्त मरीज को मैकेनिकल वेंटिलेटर पर रखा और जब उसका डायग्नोसिस शुरू किया। पता चला कि उसे गिलैन बारे सिंड्रोम है, जिसके कारण वह पैरालाइसिस का शिकार हो गया है।उसका जिंदगी बचाना जरूरी था, परिजनों ने हॉस्पिटल पर विश्वास किया तो ईलाज जारी रखते हुए पटना से इम्युनो ग्लोबिन नाम की इंजेक्शन को पटना से मंगाया गया, जो कि 20 डोज दिया गया, जिसकी कीमत लाखों में हैं।ईलाज शुरू होने के बाद धीरे-धीरे मरीज रिकवरी कर गया और अब उसे छुट्टी दे दी गयी है।वहीं युवक के परिजनों ने भी इसके लिए अस्पताल का आभार जताया है।
डॉ सुजीत का कहना है कि यह दुर्लभ केश है।जो मेरे 25 वर्ष के कैरियर मे दूसरा है।समय रहते पहचान के कारण मरीज का सही उपचार सम्भव हुआ और जान बच गई।
मौके पर डॉ. एस. के. मिश्रा के साथ टीम में पवन कुशवाहा, प्रवीण कुमार, देवाशीष कुमार, मो. अली, मो. अब्दुल्लाह, मुकेश, मो. नबीउल्लाह, सोनी, अंजली व अखिलेश आदि शामिल थे।
क्या है यह सिंड्रोम:
गिलैन बारे (गीयान-बारे) संलक्षण ऐसी विकृति है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली परिधीय तंत्रिका तंत्र के कुछ हिस्सों पर हमला करती है। इस विकृति के लक्षणों में कम या ज्यादा कमजोरी या पैरों में झुनझुनी शामिल है. यह कमजोरी प्राय: हाथों और शरीर के ऊपरी हिस्सों में फैलती जाती है।
इन लक्षणों की तीव्रता बढ़ती जाती है और बढ़ते-बढ़ते स्थिति यह आ जाती है कि व्यक्ति अपनी पेशियों का बिलकुल भी उपयोग नहीं कर पाता और उसे एक तरह से पूरी तरह फालिज मार जाता है। और चिकित्सकीय दृष्टि से उसकी हालत गंभीर हो जाती है। मरीज को सांस लेने में सहूलियत देने के लिए उसे संवातक पर रखा जाता है।
बहरहाल, अधिकतर लोग गंभीर से गंभीर गिलैन- बारे संलक्षण से उबर जाते हैं, हालांकि कुछ लोगों में थोड़ी-बहुत अशक्तता बनी रह जाती है।
गिलैन-बारे संलक्षण विरलों में ही दिखाई देते हैं। आमतौर पर ये संलक्षण मरीज में श्वसन या जठरांत्रीय विषाणु संक्रमण के लक्षण दिखने के कुछ दिनों या हफ्तों बाद प्रकट होते हैं।