*कैसे जीतेंगे कोविड पर जंग,जब ऐसी व्यवस्था से चिकित्सक ही है तंग!
रक्सौल।( vor desk )।रक्सौल के हजारीमल हाई स्कूल स्थित अस्थाई कोविड केयर सेंटर में मरीजों का इलाज ‘किस्मत के भरोसे’ दिख रही है।जहां भर्ती होने की गारंटी है,लेकिन ,जान बचने की गारंटी नही है।यह 30 बेड का कोविड केयर सेंटर है,जहां करीब 23 बेड लगे हुए हैं।लेकिन,मरीज इक्के दुक्के ही दिखते हैं।ज्यादातर जिसको ऑक्सीजन की जरूरत है,या कही एडमिट नही हो पाते या फिर पैसे नही है,वे ही यहां भर्ती होते हैं।शुक्रवार को एक भी मरीज यहां नही दिखा।वहीं,सबसे अहम तो यह है कि मरीज़ो के इलाज की खानापूर्ति हो रही है।क्योंकि,यहां एक भी एमबीबीएस डॉक्टर की प्रतिनियुक्ति रोस्टर में नही की गई है।सेंटर पर जो सूचना चस्पा की गई है,उसमे केवल आयुष चिकित्सको के भरोसे इस सेंटर को छोड़ दिया गया है।जबकि, कोविड 19 के मरीज़ो के आईसोलेशन या इलाज के लिये पीएचसी यानी सरकारी स्तर पर जारी प्रोटोकॉल का ही पालन होता है।जिसमे केवल एलोपैथ की दवा की लिस्ट शामिल है।जिसके लिए एमबीबीएस डॉक्टर की देख रेख जरूरी है।लेकिन,जब मरीजो को रेफर करना है,तो,एमबीबीएस डॉक्टर पहुँच जाते हैं।जब इलाज की जरूरत व रोस्टर वार ड्यूटी या फील्ड वर्क का शेड्यूल होता है,तो,वह आयुष डॉक्टरो के भरोसे छोड़ दिया जाता है।
बताते हैं कि सेंटर पर 7 मई को कार्यालय प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी के आदेश से जारी जो रोस्टर है,उसमे अगले आदेश तक सुबह के 8 बजे से दोपहर के 2 बजे तक डॉ जीवन कुमार चौरसिया को प्रतिनियुक्त किया गया है।वहीं,दोपहर के 2 बजे से 8 बजे तक डॉ0 आफताब आलम को तथा शाम 8 बजे से अगली सुबह के 8 बजे तक डॉ राजेन्द्र प्रसाद सिंह को प्रतिनियुक्त किया गया है।
बताते हैं कि पिछले दिनों 19 मई को जब एक महिला संक्रमित को रेफर करना था तो पीएचसी के एमबीबीएस डॉक्टर राजीव रंजन पहुंच गए।जबकि, उस वक्त रोस्टर के हिसाब से सेंटर इंचार्ज डॉ आफताब आलम की ड्यूटी थी।जब उनसे मरीजो के इलाज की पद्धति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम आयुष के डॉक्टर हैं।हमें यहां प्रतिनियुक्त किया गया है।एलोपैथी के दवाओं की लिस्ट दी गई है।जो सरकार के प्रोटोकॉल के तहत है।उसी से इलाज होता है।एलोपैथ भी अच्छी पद्धति है।लेकिन,हम तो आयुष के डॉक्टर हैं।आयुष ही हमारी विधा है।तो हमे भी इसी पद्धति से उपचार का मौका मिलना चाहिए, लेकिन, ऐसा नही है।उन्होंने कहा कि सरकार से हमारी मांग है कि आयुष आईसोलेशन बनना चाहिए, और वहां हमे प्रतिनियुक्त करना चाहिये।तब अगर हम बेहतर रिजल्ट न दे तो सवाल खड़े करना चाहिए।उन्होंने इस रोस्टर के बाबत कहा कि यह तो प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी व स्वास्थ्य प्रबंधक से पूछना चाहिये, हमे उन्होंने प्रतिनियुक्त किया है।हम यहां अपनी ड्यूटी पर मौजूद हैं।
इधर,सूत्रों का कहना है कि 27 अप्रैल को जब यह सेंटर चालू हुआ तो एक एमबीबीएस डॉक्टर अमित आनन्द को प्रतिनियुक्त किया गया था,जो ,खानापूर्ति से जरा भी कम नही था।लेकिन,यह भी रोस्टर बदल कर केवल आयुष डॉक्टरो के भरोसे ही इसे छोड़ दिया गया।जबकि,ये डॉक्टर दूसरे एडिशनल पीएचसी सेंटर के प्रभारी हैं,जहां सरकार के आदेश से वहां के ओपीडी को बन्द कर इन्हें प्रतिनियुक्त किया गया है।ऐसे में यह कोविड केयर सेंटर फस्ट एड सेंटर से ज्यादा कुछ नही दिखता,जबकि, कोविड मरीजो को ऑक्सीजन चढ़ाने की व्यवस्था है।ऐसे में सवाल खड़े होना लाजिमी है कि मरीजो का उचित इलाज ईस सेंटर में कैसे सम्भव है।खुद प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ एसके सिंह भी स्वीकार करते हैं कि यहां डॉक्टरो व संसाधन की कमी है।यह हॉस्पिटल आईसीयू लेबल का नही है।इसलिए क्रिटिकल मरीजों को आईसीयू लेबल के इलाज के लिए हायर सेंटर रेफर भी किया गया ।उन्होंने बताया कि यहां करीब 45 मरीज भर्ती हुए।जिसमे सात आठ मरीज दो तीन दिन में ही ठीक हो कर घर चले गए।दुर्भाग्यवश एक मरीज को हम नही बचा सके।फिर भी हमने बेहतर करने का प्रयास किया है।एक मरीज अखिलेश राउत ,जो काफी क्रिटिकल थे,वे यहां 15 दिन के उपचार के बाद कोविड से जंग जीत कर घर लौट चुके हैं।
इधर,कोविड सेंटर से रेफर हुए करीब तीन मरीज की मौत हो गई है।इसमे छौड़ादानो के शिक्षक स्व गगन देव सिंह के रिश्तेदार धुरुव नारायण कुशवाहा का कहना है कि हमे आवश्यक दवा व इंजेक्शन बाजार से खरीदना पड़ा।लक्षण वाले मरीजो को भी कोविड निगेटिव रिपोर्ट आने पर रेफर कर दिया जाता है,ऐसे ही कारणों से मेरे मरीज की मौत हो गई।यदि कोविड केयर सेंटर बनाया गया है, तो चिकित्सकों के साथ सुविधा व संसाधन भी मुहैय्या कराना चाहिए।ताकि मरीजो की जान बच सके।लेकिन,यहांं कोविड केयर सेंटर मरीजो से मजाक का दूसरा नाम बन गया है।