रक्सौल।( vor desk)।कोरोना महामारी के वैश्विक दौर में अपने परिजनों को बचाने के लिए लोग क्या क्या नही कर रहे,लेकिन,सरकार की जो व्यवस्था है,उसमे इलाज से पहले ही लोग हार मान ले रहे हैं।बुधवार की दोपहर रक्सौल के हजारीमल हाई स्कूल स्थित अस्थाई कोविड केयर सेंटर में भी एक ऐसा ही वाक्या सामने आया,जब वहां भर्ती एक महिला संक्रमित को रेफर करने के क्रम में बड़ी चूक सामने आई है।एक संक्रमित बुजुर्ग महिला को इलाज के लिए हायर सेंटर रेफर कर दिया गया।जबकि, स्थिति नाजुक थी।इस दौरान कोविड प्रोटोकॉल का जम कर उल्लंघन हुआ।
एक ओर जहां इस सेंटर की कुव्यवस्था ऐसी रही कि परिजनों ने खुद से ऑक्सीजन सिलेंडर का मास्क निकाला।कोई स्वास्थ्य कर्मी मरीज को जब एम्बुलेंस में रखने को तैयार नही हुए,तो हार कर दो शिक्षक बेटों व बीमार महिला के पति प्रयाग पड़ित ने एम्बुलेन्स में उन्हें रखा।वो भी बिना पीपीई किट पहने,क्योंकि इसे मुहैया नही कराया गया। उन्हें एम्बुलेन्स में जब रखा गया,तो स्ट्रेचर भी नही दिया गया।यही नही एक साथ कई परिजन एम्बुलेंस में असुरक्षित ढंग से रवाना हुए।जबकि, कोविड मरीज को सरकारी एम्बुलेंस से रेफर करने की बजाय उन्हें निजी एम्बुलेंस की सेवा लेनी पड़ी।
आदापुर के नकर देई वसतपुर निवासी नियोजित शिक्षक वीवेक पंडित व मुकेश पंडित ने बताया कि उन्होंने अपनी मां को सुबह ही यहां बाइक से ला कर भर्ती कराया था,लेकिन,दवा या अन्य उपचार की कमी के कारण उन्हें रेफर कराना पड़ा।उन्होंने बताया कि पिछले बुधवार को ही उनकी मां की जांच आदापुर पीएचसी में हुई थी,जिसमे उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।तबियत बिगड़ने पर उन्हें बुधवार की सुबह ही भर्ती कराया गया।बाद में पीएचसी के चिकित्सक डॉ राजीव रंजन ने उन्हें रेफर कर दिया।परिजनों ने बताया गया कि उन्हें लिवर की समस्या है।ऐसे में जब दवा ,और सही इलाज की दिक्कत थी,तो,रेफर कराना ही मजबूरी थी।इस दौरान पूछे जाने सेंटर इंचार्ज डॉ आफताब आलम ने बताया कि मरीजो ने अपनी स्वेच्छा से बेहतर इलाज के लिए रेफर कराया है।उन्होंने एम्बुलेंस की मांग नही की।जबकि, पीपीई किट उपलब्ध नही था।
बता दे कि पिछले दिनों रेलकर्मी रिंकू झा की भी मौत इलाज के क्रम में हो गई थी।तब स्वच्छ रक्सौल के अध्यक्ष रणजीत सिंह ने शव को परिजनों के साथ एम्बुलेंस में रखा था।रणजीत कहते हैं कि ऐसे में यह समझा जा सकता है कि यह केंद्र कोरोना ठीक करने की जगह है,या संक्रमण फैलाने की ।उन्होंने कहा कि मरीज के परिजनों को पीपीई किट पहना कर ही रेफर करने देना चाहिए था।यह लापरवाही है।इससे मरीज के साथ परिजन भी संक्रमित्त हों जाएँगे।यह समझने की बात है कि दो शिक्षक बेटे सब कुछ जानते समझते भी अपनी मां को बचाने के लिए कैसे उन्हें गोद मे उठा लिया।और सिस्टम है कि देखता रहा।इससे कितनी क्षति होगी,इसका आंकलन कौन करेगा?जो शिक्षक बच्चों का भविष्य गढ़ते हैं,उनकी यह दुर्दशा है।पहले भी।रक्सौल में तीन शिक्षक कोरोना से बे मौत मर चुके हैं।