रक्सौल।( vor desk )।पुलिस के डंडे खाएंगे,मजबूरी है .. घर वापस जरूर जाएंगे!बिहार में काम नही मिलने से पुनः नेपाल ही जाएंगे।यह एक सच्चाई है।माओवादी आंदोलन हो, भूकम्प हो,नाकेबंदी हो या फिर कोरोना का कहर.. बिहार व यूपी के मजदूर नेपाल में कामगार की विवशता है कि वो नेपाल जाते हैं और बदले में त्रासदी झेलते हैं।
इस बार भी कोरोना के दूसरे लहर में भी नेपाल के लॉक डाउन की मार बिहार -यूपी के मजदूरों-कामगारों पर पड़ी।झोला-कपड़ा सम्भाल कर किसी तरह घर वापसी को रवाना हो गए।फैक्ट्रियों व ठेकेदारों से बकाया रकम नही मिले।खाने खाने को तरसते दिखे।
जगह जगह नेपाल पुलिस के डंडे खाए। अब बिहार आने पर अपने घर जाने के लिए बस में कोंच कोंच कर जाने को मजबूर है।
बॉर्डर पर उन्हें 30 -30 किलो मीटर तक पैदल चलना पड़ा।क्योंकि,सीमा से लगे पर्सा जिला में गुरुवार 29 अप्रैल से 7दिनों के लिए लॉक डाउन लग गया है।लॉक डाउन काठमांडू समेत 15 जिलों में लगा है।इन्हें घर जाने के लिए दो दिन पहले ही अल्टीमेटम दे दिया गया था।सो भागम भाग मच गई।बसों में किसी तरह जगह मिली।तीन गुना ,चार गुना भाड़ा दिया।जेब के पैसे रास्ते मे खत्म हो गए।भुख प्यास से बिल बिलबिलाते बच्चे और पसीने से तर बतर महिलाएँ पैर में छाले के साथ अपने समानों के साथ परिजनों संग रक्सौल पहुंचे।
बॉर्डर पर कोविड की जांच नही हो रही है।कुछ की चाहत रही कि जांच करा ली जाए।लेकिन,ऐसा नही हुआ।प्रशासन व समाजिक संगठनों की ओर से पानी,खाना की कोई व्यवस्था नही रही।सो भटकना लाजिमी रहा।
कोविड 19 महामारी में भारत ही क्या अन्य देश मे दूसरे लहर का असर देखने को मिल रहा है ।भारत के कई राज्य अपने हिसाब से लॉक डाउन ,तो कही 144 धारा,नाइट कर्फ्यू लगा रही है।नेपाल में भी ऐसा ही है।अंतर यह है कि यह स्वदेश नही पड़ोसी मुल्क है।जहां अपनी सरकार की तरह चिंता या सहयोग नहीं मिल सकती।इस बार भारतीय दूतावास भी मदद के लिए आगे आती नही दिख रही।
पिछली बार के कोरोना काल की तरह नेपाल सरकार की चाहत यही दिख रही है कि भारतीय खुद से अपने देश लौट जाएं।इसलिए पिछली बार की तरह बॉर्डर सील होने के बाद भी उन्हें भारत लौटने से रोका नही जा रहा।
गुरुवार को करीब 30 हजार से ज्यादा भारतीय केवल रक्सौल बॉर्डर पहुंचे।यह सिलसिला लगातार जारी है।सुबह चार बजे से कुछ ज्यादा ही तेजी आई।जो रात्रि तक जारी रहा ।यह आंकड़ा आर्म्ड पुलिस फोर्स का है।लेकिन,बिहार बॉर्डर पर अधिकारियों के पास इस पर कोई होम वर्क या फील्ड वर्क नही दिख रहा।
बिहार -नेपाल सीमा के सटे नेपाल में कोविड 19 का दूसरा दौर बड़ी तेजी से अपना पैर पसार रहा है ।रक्सौल से सटे पर्सा जिला में ही अब तक 800 से अधिक संक्रमित हैं, तो करीब 19 की मौत हो चुकी है ।जिसको देखते हुए स्थानीय पर्सा जिला प्रशासन ने अपने सीमा को पर पाबंदी के साथ सुरक्षा बंदोबस्त तेज कर दिया है। यहां तक कि किसी भी विदेशी नागरिक को नेपाल आने जाने की अनुमति नही है ।इस श्रेणी में भारत भी है,जिसे प्रवेश आज्ञा की जरूरत तो नही है,लेकिन,आरटीपीसीआर रिपोर्ट 72 घण्टे की जरूर चाहिए।साथ ही 10 दिनों का होटल बुकिंग का प्रमाण,ताकि, आइसोलेशन में रहा जा सके ।नेपाली नागरिको को ले कर भारत की सरकार या प्रशासन ने ऐसा कोई निर्देश नही दिया है
उधर, पूरे पर्सा जिला में निषेधाज्ञा लगा दी गई है ।इस कारण भारतीय नागरिक बस व अन्य वाहनों से बारा जिला पहुंच रहे हैं।वहां से घण्टों पैदल चल कर रक्सौल आ रहे हैं।
ऐसे त्रासदी व विपरीत स्थिति में बिहार के विभिन्न जिलों के कामगार नेपाल से काम बंद होने की स्थिती में घर वापसी कर रहे है।उन्हें पैदल ही अपने मासूम बच्चे को गोद मे लेकर अपने सामान के साथ वतन वापसी करना पड़ रहा है। पर्सा में 144 होने से पुलिस की हल्की मार भी झेलने पड़ रही है ।फिर भी ये अपने वतन आने को आतुर है।यह विवशता भी है।
इन दिनों बड़ी संख्या में सीमा पर बिहार के कामगार वापस आते देखे जा सकते है ।
इन कामदारों ने बताया कि नेपाल में काम बंद हो गया है। तो क्या करे? कैसे भी अपने से आने को मजबूर हैंं। पर बिहार में उन्हें काम नही मिलता, जिससे वे पुनः स्थिति ठीक होने पर नेपाल का ही रुख करेंगे।
रक्सौल जैसे तैसे पहुचे कामगार को ट्रेन की ब्यवस्था समुचित नही होने से बस वाले भी बिहार सरकार के दिशा निर्देश का खुलेआम उलंघन करते हुए बस में जैसे तैसे बस के छत पर ,गेट पर, सीट फूल होने पर खड़ा कर, उनके मजबूरी का फायदा उठा कर वाहन संचालक मोटी कमाई कर रहे है। केंद्र व बिहार सरकार व प्रशासन मूकदर्शक बनी हुई है ।बिहारी मजदूूूर अपने आंखों का आंसू खुद पोछते हुए जान की बाजी लगाए इस बुरे दौर को पीछे छोड़ फिर से आगे बढ़ने की हिम्मत बटोर रहा है।लेकिन,क्या ऐसे ही चलेगा?य सवाल जिंदा है और बहस के केंद्र में है।