काठमांडू/बीरगंज( नेपाल )।(vor desk )। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसले में तय समय से पहले चुनाव की तैयारियों में जुटे प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को झटका देते हुए संसद की भंग की गई प्रतिनिधि सभा को बहाल करने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर जेबीआर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 275 सदस्यों वाले संसद के निचले सदन को भंग करने के सरकार के फैसले पर रोक लगा दी। अदालत ने निचले सदन को भंग किये जाने को “असंवैधानिक” करार देते हुए सरकार को अगले 13 दिनों के अंदर सदन का सत्र बुलाने का आदेश दिया।
सत्ताधारी दल में खींचतान के बीच नेपाल उस समय सियासी संकट में घिर गया था जब सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के अंदर चल रही वर्चस्व की लड़ाई के बीच प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने 20 दिसंबर को संसद की प्रतिनिधि सभा को भंग कर 30 अप्रैल और 10 मई को नए सिरे से चुनाव कराने की घोषणा कर दी।
सदन भंग किये जाने की अनुशंसा करते हुए राष्ट्रपति भंडारी को लिखे अपने पत्र में ओली ने दलील दी थी कि वह सदन में 64 प्रतिशत बहुमत रखते हैं और नई सरकार के गठन की कोई संभावना नहीं है स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये देश को लोगों के नए जनादेश की आवश्यकता है।
ओली के प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फैसले का पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाले नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के विरोधी धड़े ने विरोध किया था। प्रचंड सत्ताधारी दल के सह-अध्यक्ष भी हैं।
शीर्ष अदालत में संसद के निचले सदन की बहाली के लिये सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्य सचेतक देव प्रसाद गुरुंग की याचिका समेत 13 रिट याचिकाएं दायर की गई थीं।
संविधान पीठ में विशंभर प्रसाद श्रेष्ठ, अनिल कुमार सिन्हा, सपना माल्ला और तेज बहादुर केसी भी शामिल थे। पीठ ने 17 जनवरी से 19 फरवरी तक मामले की सुनवाई की।
प्रतिनिधि सभा को भंग करने के अपने फैसले का ओली (69) यह कहते हुए बचाव करते रहे हैं कि उनकी पार्टी के कुछ नेता “समानांतर सरकार” बनाने का प्रयास कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि उन्होंने यह फैसला लिया क्योंकि बहुमत की सरकार का नेता होने के नाते उनके पास यह निहित शक्ति थी।
पिछले महीने, प्रचंड के नेतृत्व वाले एनसीपी के धड़े ने प्रधानमंत्री ओली को कथित पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की आम सदस्यता से निष्कासित कर दिया था।
पूर्व में दिसंबर में पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल को पार्टी का दूसरा अध्यक्ष नामित किया गया। प्रचंड पार्टी के पहले अध्यक्ष हैं। पूर्व में ओली पार्टी के सह अध्यक्ष होते थे।
एनसीपी का प्रचंड के नेतृत्व वाला धड़ा और मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस प्रतिनिधि सभा को भंग किये जाने का इसे असंवैधानिक व अलोकतांत्रिक बताते हुए विरोध कर रहे हैं। प्रचंड के नेतृत्व वाला धड़ा देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध रैलियां और जनसभाएं कर रहा था।
ओली के नेतृत्व वाला सीपीएन-यूएमएल और प्रचंड के नेतृत्व वाला एनसीपी (माओवादी सेंटर) का, 2017 के आम चुनावों में गठबंधन को मिली जीत के बाद विलय हो गया था और एकीकृत होकर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का मई 2018 में गठन हुआ था।
निचले सदन को भंग किये जाने के बाद पार्टी बंट गई और ओली व प्रचंड दोनों के ही नेतृत्व वाले धड़ों ने निर्वाचन आयोग में अलग-अलग आवेदन देकर अपने धड़े के वास्तविक एनसीपी होने का दावा किया और उन्हें पार्टी का चुनाव चिन्ह आवंटित करने को कहा।
इस बीच प्रचंड और माधव कुमार नेपाल ने ओली पर इस कानूनी जीत पर प्रसन्नता जाहिर की है।
प्रचंड और नेपाल, प्रचंड के गृहनगर चितवन पहुंचे और इस फैसले का स्वागत किया।
इधर, बीरगंज में सांसद लक्ष्मण लाल कर्ण,हरि नारायण रौनियार व प्रदीप यादव समेत कांग्रेस के पूर्व मंत्री व केंद्रीय सदस्य अजय चौरसिया आदि ने इस फैसले के प्रति सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों का आभार प्रकट करते हुए इसे लोकतन्त्र की जीत करार दिया।वहीं, बीरगंज में जसपा नेताओं समेत विपक्षी पार्टियों ने दीप जला कर स्वागत किया।जसपा के केंद्रीय सदस्य देवेन्द्र मिश्र,निजामुद्दीन सम्मानी, नगर अध्यक्ष ओम प्रकाश सर्राफ ने कहा कि निरंकुशता हार गई।लोकतन्त्र मजबूत हुआ है।( रिपोर्ट:vor desk/agencies )