रक्सौल।( vor desk )।एक सदी के बीच फ्लेजरगंज अब रक्सौल बन गया है।इस बदलाव में अंग्रेजों से मिली आजादी के बाद स्वतंत्र भारत मे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल अनेको योद्धा व उनकी निशानी गुमनाम इसलिए रह गई,क्योंकि,उन्हें संजोने की उचित पहल नही हुई।इस कड़ी में खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अछूते नही हैं।उनके कर्म भूमि रहे चम्पारण के अभिन्न हिस्सों में उनकी यात्रा व सँघर्ष को पहचान दिलाने के लिए आज भी सँघर्ष जारी है।जी हां,रक्सौल इसका नायाब उदाहरण है।यहां भी महात्मा गांधी आये थे।उनके आगमन के आज 9 दिसम्बर को एक सदी पूरे हो गए।लेकिन, यह ‘गुमनाम’ सा ही रह गया।न तो कोई कार्यक्रम हुआ,न रक्सौल को इस मुतल्लिक पहचान मिली ,न ही उचित सम्मान!सत्याग्रह शताब्दी समारोह में भी यह कह कर टाल दिया गया कि रक्सौल तो चम्पारण का ही हिस्सा है।यह ठीक भी है,लेकिन,यह भी केंद्र व राज्य सरकार के द्वारा रक्सौल की उपेक्षा का ही दूसरा रूप रहा।शायद इसीलिए,यहां न तो राष्ट्रीय गांधी प्राथमिक विद्यालय का संरक्षण -संवर्द्धन हुआ।ना ही यहां शिलान्यास व घोषणा के बावजूद सीमा या शहर में ‘गांधी द्वार ‘बन सका।न एक अदद प्रतिमा लग सकी।न रक्सौल स्टेशन पर आगमन के कोई चिन्ह मिलते हैं।जिससे पता लग सके कि महात्मा गांधी कभी रक्सौल भी आये थे।
इतिहास के आईने में महात्मा गांधी रकसौल में:
दस्तवेजो के आधार पर बताया जाता है कि 9 दिसंबर 1920 को महात्मा गांधी रक्सौल आये थे। डा. राजेन्द्र प्रसाद, मजहरूल हक और शौकत अली भी उनके साथ थे।यहां हरि प्रसाद जालान की पथारी में उन्होंने भाषण दिया था ।जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय खोलने का आह्वान भी किया। उस सभा में रक्सौल के साथ सीमावर्ती क्षेत्र के लोग भी शामिल हुए। उन लोगों ने आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा था। उस आह्वान पर 1921 में रक्सौल के पुराने एक्सचेंज रोड में राष्ट्रीय गांधी विद्यालय की स्थापना हुई जो स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में क्रांतिकारियों की शरणस्थली भी बनी। महात्मा गांधी के निजी सचिव रहे स्व. महादेव देसाई की डायरी के पन्ने इस यात्रा की पुष्टि करते हैं। इस डायरी को चंपारण सत्याग्रह का एक प्रामाणिक दस्तावेज माना जाता है। Gandhi heritage portal/ Collected works of Mahatma Ganghi में भी इसका जिक्र मिलता है। डा. राजेन्द्र प्रसाद की पुस्तक ‘Satyagraha in Champaran’ समेत के. के. दत्ता की पुस्तक में भी गांधी की इस यात्रा का वर्णन है। 1979 में इस सीमा क्षेत्र का इतिहास ‘रक्सौल – अतीत और वर्तमान’ के नाम से प्रकाशित हुआ था जिसके लेखक शिक्षाविद् स्व0 कन्हैया प्रसाद (सेवानिवृत शिक्षक)थे।इस पुस्तक में ऐतिहासिक दस्तावेज के आधार पर भी महात्मा गांधी की रक्सौल यात्रा का बाकायदा उल्लेख किया गया है।
1907 में हडसन साहब के मैनेजर फलेजर साहब ने रक्सौल नगर की नींव डाली थी और इस क्षेत्र के सुनियोजित विस्तार के लिए लोगों को प्रेरित किया था। इसलिए इस नगर को ‘फलेजरगंज’ के नाम से भी जाना गया। बाद में मैनेजर जे.पी.एडवर्ड ने भी इस नगर के विस्तार में दिलचस्पी ली। जिनका निवास स्थान इस क्षेत्र में ‘हरदिया कोठी’ बना। 17 एवं 21 मई 1917 को महात्मा गांधी द्वारा जेपी एडवर्ड को लिखे पत्र भी रक्सौल के लोगों की समस्याओं पर महात्मा गांधी की चिंता को दर्शाते हैं।जिसमे रक्सौल के तीन लोगों का घर जल जाने के बाद उसे अंग्रेज बनने नही दे रहे थे।उनकी पहल उन्हें घर बनाने की इजाजत मिली थी।
महात्मा गांधी के साथ रक्सौल के संदर्भों को समझने के लिए ‘फलेजरगंज’, ‘हरदिया कोठी’ और ‘रक्सौल बाजार’ को भी जोड़कर देखना होगा। रक्सौल नाम उस समय ज्यादा प्रचलन में नहीं था। ऐतिहासिक कार्यों का अध्ययन करते समय इतिहासकार के उल्लेखों को साक्ष्यों और तथ्यों के आलोक में देखे जाने की आवश्यकता होती है। उपरोक्त पुस्तकें जो महात्मा गांधी के चंपारण आंदोलन से जुड़े विभिन्न संदर्भों का विवरण देती हैं। उनके साथ यहां के इतिहासकारों और विज्ञों की राय लेकर इस शृखला में रक्सौल को भी शामिल करने की कई बार मांग भी की गई है।लेकिन,आज तक कोई सकारात्मक पहल नही हो सकी।अब तो रक्सौल के अधिकारी,राजनीतिज्ञ व पढ़ने वाले बच्चे भी यह नही जानते कि यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आये थे।शायद यही कारण की 9 दिसम्बर को रक्सौल ने उन्हें याद तक नही किया।(क्रमशःयह श्रृंखला आगे भी जारी रहेगी,ताकि,महात्मा गांधी के आगमन की प्रमाणिकता सिद्ध हो और रक्सौल को महत्व मिले, और यहां राष्ट्र पिता को उचित सम्मान…..!)