रक्सौल।( vor desk )।शारदीय नवरात्र के अंतिम दिन सोमवार को कन्या पूजन व पूर्णाहुति का क्रम चलता रहा।वहीं,रक्सौल स्थित सेवक संजयनाथ काली मंदिर में नवमी का महापर्व भव्य रूप में संपन्न हुआ। सुबह 6 बजे साधना गृह का पट खुलने के साथ ही मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। भक्तों ने साधना गृह स्थित जगतजननी मां काली के अद्भुत रूप का दर्शन किया।
8 बजे वामाचार्य पीठाधीश सेवक संजयनाथ जी के द्वारा कालकालीनाथ महादेव की भष्म आरती संपन्न हुई। दोपहर 2 बजे से अखण्ड हवन कुंड में हवन कार्य आरंभ हुआ जिसमें सभी भक्तों ने बारी बारी से हवन संपन्न कर अपने अपने कलश का विसर्जन किया।
साधना गृह में मां काली के समक्ष छप्पन भोग अर्पित किया गया। तीन कुमारी कन्याओं को महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में पूजन कर 51 कुमारी कन्याओं को भोग अर्पित किया गया।
संध्या 6 बजे कालकालीनाथ की भस्म आरती के पश्चात दसमुखी काली के समक्ष महाआरती सम्पन्न हुई जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु भक्तगण सम्मिलित हुए।
संध्या समय मंदिर परिसर में महाभंडारा का भी आयोजन किया गया जिसमें सभी भक्तों ने भोगप्रसाद ग्रहण किया।
इस आश्विन नवरात्र में देश विदेश के भक्तों द्वारा यहां 501 कलश स्थापित किये गए थे। नौ दिनों तक चले इस कार्यक्रम में बाहर से आये भक्तों के साथ समस्त नगरवासी भी भक्तिसागर में गोते लगाते रहे।
करीब तीन दशकों से भारत नेपाल सीमा पर अवस्थित यह काली मंदिर देश विदेश के असंख्य भक्तों की आस्था और भक्ति का केंद्र बना हुआ है।
इधर,शहर के विभिन्न मन्दिरो व पूजा पंडालों में हवन,पूर्णाहुति व कन्या पूजन का आयोजन हुआ।साथ ही विजयादशमी पर्व मनाने की तैयारी भी जारी रही।
सिद्धिदात्री की पूजा :नवरात्रि के 9वें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इसके अगले दिन विजया दशमी पर्व मनाया जाता है। नवमी के दिन लोग नौ कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोग लगाते हैं। और इसी दिन नवरात्रि पर्व का समापन हो जाता है।
शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षक का वध किया था। भविष्य पुराण में श्रीकृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर के संवाद में दुर्गाष्टमी और महानवमी के पूजन का उल्लेख मिलता है। इससे पता चलता है कि महानवमी के दिन युगों-युगों से मां दुर्गा की अराधना होती आ रही है।
ऐसी मान्यता है कि मां भगवती ने 9वें दिन देवताओं और भक्तों के सभी वांछित मनोरथों को सिद्ध कर दिया जिससे वे मां सिद्धिदात्री के रूप में संपूर्ण विश्व में विख्यात हुईं।