रक्सौल।( vor desk )।अब भूखे मर जाएगी बुढ़िया!हॉ, भूखे…क्योकि उसे खाना नसीब नही है।जैसे तैसे जीना भी मुश्किल है।इससे शासन को मतलब नही ,प्रशासन को पता नही।यह बुढ़िया पहले कैसे जीती थी,यह किसी को नही पता।लेकिन, लॉक डाउन में रंजीत सिंह ने उसे सहारा दिया।सुबह शाम खीर पूड़ी खिलाई और लगातार भोजन दी। अब अनलॉक 1 शुरू होने व बाजार खुलने के बाद स्वच्छ रक्सौल की ओर से पहली वाली स्थिति नही रही। यानी रणजीत सिंह की टीम की ओर से खाना कमोवेश आ रहा है।हालांकि,रणजीत सिंह का संकल्प है कि वे भोजन की व्यवस्था करते रहेंगे।उनका कहना है कि हमने तब से उनकी देख रेख शुरू की,जब उनका वस्त्र शौच से सना रहता था।हमने डॉ0 मुराद आलम से इलाज भी कराई,ख़ाना भी दी।हमारा प्रयास है कि यह क्रम निरन्तर जारी रहे।
इधर,किस्मत की मारी बुढ़िया ना चल पा रही है ना खड़ा हो पा रही है। बस रेंगती है।हद तो तब हो जाती हैं जब वो बारिश और धूप से बचने के लिए मंदिर की ओर ज्यो ही बढ़ती है ।लोग बोल बोल के उसे भागा देते हैं। तब वो बारिस में नगर परिषद के कचरे के डब्बे में और धूप में पोल के नीचे छिपने की कोशिशें करतीं हैं। एक मदद को लाखों दुआ देती बुढ़िया रोने लगती हैं। एक ने लड्डू क्या दे डाली ..बुढ़िया लाखो दुआ दे डाली!
समाजिक सुरक्षा पेंशन,गरीबो को मदद,जैसे नारों और कार्यक्रम से इस बुढ़िया को कोई फायदा नही।क्योंकि, इसकी जांच भी किसी ने नही की कि उसके पास आधार कार्ड है या नही।वैसे जब वह सड़को पर जीने की आदि हो चुकी है। जीने व चलने का ‘आधार ‘धीरे धीरे उससे रूठ रहा है।जब उसे सहारा की जरूरत है।तो,उसे सबने बेसहारा छोड़ दिया है।.बस उसे तमगा मिला-भिखमंगी!यहां वृद्धा आश्रम भी नही कि उसे ठौर और दो शाम की रोटी मिल सके।
स्वच्छ रक्सौल के आलोक श्रीवास्तव बताते हैं कि बूढ़ी मा स्वाभिमानी है।उन्हें कोई पैसा देता है,तो,नही लेती!उनको मिले पैसे दूसरे लेते हैं ।
बताया जाता है कि बूढ़ी माई यूपी के मनका पुर की हैं।उनके बेटा और बहू ने उन्हें पिछले 22 मार्च को यहां छोड़ रफ्फूचक्कर हो गए।तब से रणजीत ही सहारा बने हुए है।जबकि, होना यह चाहिए था कि उन्हें वृद्धा आश्रम में जगह मिलती, इलाज होता।
वर्चुअल रैली के जमाने मे बुढ़िया ऐसे ही तरस रही है।सत्ता और पार्टियाँ करोड़ो अरबो फूंके जा रही है।लेकिन,उससे वोट तो मिल जाएंगे..बुढ़िया की दुआ कैसे मिलेगी?
फिलहाल,वह बुढ़िया अपना जीवन का बचा हुआ पल इस भारत नेपाल सीमा के रक्सौल में ही जीना चाहती है ।उसे इतना भर दरकार है कि उसको सकूँन से रहने दें..दो रोटी कोई दे दे,ताकि,मौत भूख से न हो!इंसानियत भी यही है कि इसकी पहल होनी चाहिए।लोगो की मांग है कि उन्हें वृद्धाश्रम में शरण दी जाए।(रिपोर्ट/फ़ोटो:जय प्रकाश )