रक्सौल।( vor desk )। पृथ्वी दिवस के अवसर पर प्रमुख पर्यावरणविद एवं शिक्षाविद प्रो0 डॉ0 अनिल कुमार सिन्हा ने लॉक डाउन के दौरान भी अपने छत पर पौधा लगाते हुए अपने दुःखित मन से उदगार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान समय में कोरोना भायरस के कारण मानव के जीवन में इतना दुःख, इतनी पीड़ा और इतना अवसाद बढ़ गया है कि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान भी उसके सामने अपने को असहाय महसूस कर रहा है।कोरोना के बाद नई दुनिया का विकास पर्यावरण संरक्षण के साथ हो जिससे वन्य प्राणियों के पर्यावास पर विशेष ध्यान दिया जा सके।प्रो0 सिन्हा ने कहा कि मानव का वजूद प्रकृति से है न कि प्रकृति का अस्तित्व मानव से है।इस सच्चाई को जब तक मनुष्य स्वीकार नहीं करेगा, उसके जीवनशैली में बदलाव नहीं होगा तब तक परिवर्तन नहीं होगा। प्रकृति को एक अंग के रूप स्वीकार करना होगा। पृथ्वी हर मनुष्य की जरूरत को पूरा कर सकती है परंतु पृथ्वी मनुष्य के लालच को पूरा नहीं कर सकती है।कोरोना का संकट आज हमें इस सीख को अपनाने का संदेश दे रहा है।
- क्रुद्ध न हो प्रकृति यह संकल्प जरूरी
डॉ0 प्रो0 स्वयं भू शलभ ने कहा है कि पृथ्वी दिवस के मौके पर कुछ सवालों का जवाब ढूंढ लेना जरूरी है…कि क्या इस कोरोना संकट के बाद के दौर में हम अपनी पुरानी गलतियों को दुहराने से बचेंगे…क्या गंगा, यमुना समेत अन्य नदियों के जल की शुद्धता आज जैसी ही बनी रहेगी…क्या वायु प्रदूषण के स्तर में जो सुधार नजर आ रहा है वह आगे भी कायम रहेगा और क्या प्रकृति जो स्वयं अपना नवनिर्माण कर रही है उसके कार्य में हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे…
पृथ्वी दिवस पर आइए हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि मानव जाति के ऊपर फिर कभी ऐसा संकट नहीं आने देंगे…हम अपनी प्राथमिकताओं में बदलाव लाएंगे…पृथ्वी और पर्यावरण की रक्षा के लिए हर संभव कोशिश करेंगे…प्रकृति को कभी क्रुद्ध नहीं होने देंगे…!