Wednesday, September 25

ललन दुर्घटना कांड:,चार बच्चों की मां शरीता के मांग का उजड़ गया सिंदूर,जन प्रतिनिधि से ले कर प्रशासन तक की नही टूट रही नींद

रक्सौल।(vor desk) । रक्सौल के मुख्य पथ पर एक बार फिर जान चली गई।लेकिन,जन प्रतिनिधि से ले कर प्रशासन तक की नींद नही टूट रहीं।सड़क पर उतर कर न्याय दिलाने और व्यवस्था में सुधार के लिए आवाज उठाने की जगह घड़ियाली आंसू बहाने वालों और बयान बाजी कर राजनीतिक रोटी सेंकने वाले की कमी नहीं।

शहर के कोईरिया टोला में साइकल से घर लौटते वक्त सोमवार की शाम राज्य परिवहन निगम के बस से कुचल कर मरे युवा ललन यादव का परिवार इस अचानक हुए हादसे से टूट गया है।चार बच्चों की मां शरिता देवी दुनियां उजड़ गई,सिंदूर मिट गया।तीन बेटे और एक बेटी अनाथ हो गए। ललन की बूढ़ी मां अब इसलिए रो रही है की बुढ़ापे का सहारा तो गया ही, अब कमाने वाला कोई नहीं।

दुर्घटना के बाद सेल्फी और विडियो बनाने की भिड़ थी।उठाने वाला कोई नही था।परिजन इस वाक्या से भी गुस्सा है कि यदि तुरंत इलाज मिला होता,तो शायद ललन बच जाता।सर पर बस चढ़ जाने के बाद ललन तड़पता रहा।लोग तमाशा देखते रहे।

पुलिस प्रशासन यह समझा कर लोगो को शांत कर दिया कि मुआवजा मिलेगा।लेकिन,इस घर का लाल कभी नही मिलेगा ,यह सब जानते हैं।यह आश्वासन किसी ने नहीं दिया कि अब किसी की जान नही जायेगी।जाम नही लगेगा।अतिक्रमण हटेगा।वेंडर जोन बनेगा।सड़क व्यवस्थित होगी।ट्रैफिक पुलिस तैनात होगी।पुलिस प्रशासन और नाका पुलिस पार्टी जाम नहीं लगने के लिए संकल्पित होगी।

यह शहर ललन की मौत पर सोशल मीडिया और मिडिया में खबरों का एंगल देख रही है।फिर से पुराने हालत और रोज मर्रा में लौट गई है।खबरों को देख अफसोस कर लिया।कोस लिया।यह आया गया मामला हो गया।
शायद कोई राज नेता और अधिकारी का बेटा मरा होता तो सड़क पर आंदोलन छिड़ा होता।सरकार हिलाई जाती।तुरंत व्यवस्था सुधार होती।विधान सभा में शोर भी होता।राज नेता मिलने के लिए तांता लगाते।लेकिन,एक गरीब की आवाज जैसे दब जाती है,उसी तरह ललन की चीख के साथ न्याय की आवाज भी दब गई।कामगार को श्रम विभाग की ओर से राहत राशि और सरकार की ओर से मुआवजा दे कर मामले का इति श्री होगा,जिसमे थोड़ा समय लगेगा।

इधर, रक्सौल के नोनेयाडीह में बस दुर्घटना में मृतक ललन यादव का जब पार्थिव शरीर पहुंचा तो गांव में कोहराम सा मच गया। पत्नी बेहोश होकर गिर गई। मां रो रो कर बेहाल थी। चार छोटे-छोटे बच्चे चिल्ला रहे थे, कई महिलाएं बेहोश पड़ी थी।दुर्घटना के बाद मृतक की अंत्येष्टि हो गई।सिस्टम अपनी जगह कायम रहा।

युवा समाजसेवी शशांक शेखर मृतक के घर पहुंचने पर इसलिए आवाक थे,क्योंकि,घर के नाम पर चंद कोठरी है और छत नदारद है।राजद नेता राम बाबू यादव भी पहुंच गए और कोस कर चले आए।जबकि बिहार में महा गठबंधन की सरकार है।उनके निशाने पर वे वोटर थे,जिन्होंने यहां के जनप्रतिनिधियों को वोट दिया है।विडंबना है की जनप्रतिनिधि भाजपा के हैं।बिहार में उनकी सरकार नही है।लेकिन,सांसद और विधायक बिहार में विपक्ष की भूमिका में हैं।केंद्र में उनकी सरकार है।लोगों को अपेक्षा है।लेकिन,सियासत का अपना रूप और तरीका है।ऐसे में केंद्र और बिहार की सियासी लडाई में इंसान की दुर्गति तो होनी ही है।ठगे वोटर और पीड़ित फिर भी आश नही छोड़ते..।यह आश अब भी कायम है।

दरसल, रक्सौल के मेन रोड में अलग अलग दुर्घटना में मां बेटे और दो स्कूली बच्चों की दर्दनाक मौत को भी शहर भूल गया।वर्ष 2018 में नागा रोड का युवा संतोष पटेल भी अपाहिज हो कर नेपथ्य में गुम हो गया।शहर अपनी धुन में है।प्रशासन और राज नेता अपनी धुन में ।अगली बारी किसकी होगी,कहा नही जा सकता।लेकिन,तय है कि हादसों के शहर में अभी मौत का सिलसिला खत्म नही होता दिख रहा।

राजद नेता सुनील कुशवाहा कहते हैं कि इतिहास यही रहा है कि जब जब रक्सौल में सड़क और दुर्घटना के खिलाफ आवाज उठाई गई,झूठे मुकदमे में फंसा दिया गया। रक्सौल की जनता आगे नही आई।

वहीं,वर्ष 2017में दो बच्चों की मौत के बाद पूर्व प्रमुख मोहम्मद असलम के नेतृत्व में हुए आंदोलन को दबाने की कोशिश के बीच पहल कर मामला शांत करने में अहम भूमिका निभाने वाले मीडिया फॉर बॉर्डर हरमोनी संगठन के केंद्रीय सदस्य मुनेश राम का कहना है कि प्रशासन ने तब 9सूत्री समझौता किया था,तब लाश उठा था।यदि उक्त मांग और समझौते को प्रशासन धरातल पर उतार देती तो ललन की मौत नही होती।रक्सौल को दर्दनाक हादसे नही देखने पड़ते।

फिलहाल, रक्सौल में मृतका की पत्नी सरिता के आवेदन पर थाना कांड संख्या 487/2023 दर्ज कर जांच की जा रही है।बस शहंशाह कम्पनी की थी ,जिसका चालक भाग निकला।साइकल और बस को पुलिस ने नियंत्रण में ले लिया है।

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