Sunday, September 22

501 कलशों की स्थापना के साथ सेवक संजयनाथ काली मंदिर में नवरात्र महापर्व का शुभारंभ!

रक्सौल।(vor desk )।रक्सौल समेत सीमावर्ती क्षेत्र में शारदीय नवरात्र पर भक्तिमय माहौल के बीच पूजा अर्चना शुरू हुई।इस मौके पर मठ-मंदिरों में प्रात:काल घट स्थापना के साथ मां नव दुर्गा के प्रथम रूप शैल पुत्री की पूजा अर्चना हुई। प्रात:काल से ही विभिन्न मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा और माहौल मां दुर्गा के जयकारों से गूंज उठा।

इस बीच रक्सौल स्थित सेवक संजयनाथ तांत्रिक काली मन्दिर में आज रविवार को आश्विन नवरात्र का महापर्व 501 कलशों की स्थापना के साथ विधिवत आरंभ हुआ।

आज सुबह से ही अपने अपने कलश की स्थापना के लिए दूर दूर से आये भक्तों का मंदिर में तांता लगा रहा। भक्तों के कलश मन्दिर के विभिन्न तलों पर स्थापित किये गए हैं।

आज कलश स्थापना के साथ मां काली की पूजा अर्चना एवं भस्म आरती भी संपन्न हुई। इस मौके पर वामाचार्य सेवक संजयनाथ जी महाराज ने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि मन्दिर के पहले तल पर स्थापित दसमुखी काली की प्रतिमा ‘दुर्गा सप्तशती’ के प्रथम अध्याय में वर्णित आदि शक्ति का जीवंत रूप है जिसके दर्शन मात्र से नवरात्र पूजन का समस्त फल प्राप्त होता है।

नौ दिनों तक चलनेवाले इस महापर्व के विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि महासप्तमी के दिन माँ दसमुखी काली का महास्नान संपन्न होगा एवं महाआरती होगी। महाअष्टमी को कालभैरव की पूजा संपन्न होगी।

महानवमी के दिन प्रातः साधना गृह का पट भक्तों के लिए खुलेगा जिसमें भक्तगण जगतजननी माँ काली के अद्भुत रूप का दर्शन कर सकेंगे। माँ को छप्पन भोग अर्पित किया जाएगा। तीन कुमारी कन्याओं को महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में पूजन कर 51 कुमारी कन्याओं को भोग अर्पित किया जाएगा। हवन एवं महाभण्डारा का आयोजन होगा।

विदित है कि नवरात्र के दौरान प्रतिदिन सुबह शाम संपन्न होनेवाली भष्म आरती में भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है।

इस वर्ष भारत और नेपाल के अतिरिक्त अन्य देशों के भक्तों ने भी अपना कलश यहां स्थापित कराया है।

इधर,शास्त्रीय विधान के अनुसार, घर के देव स्थल पर मिट्टी और रेत के ऊपर जौ बोए गए और गंगा जल से भरे कलश में कुशा, सप्त औषधि, चावल आदि रखे। गणेश पूजन, नव ग्रह पूजन, भूमि पूजन, दीप पूजन के बाद कलश पूजन हुआ और आदि शक्ति से घर विराजने की प्रार्थना की गई। घट के सामने ही मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाएगी। तीसरे दिन घट में बोए जौ भी अंकुरित हो जाएंगे।

धार्मिक मान्यता है कि कलश में भरा गंगाजल नौ दिनों तक अमृत तुल्य बन जाता है। शारदीय नवरात्रों में कहीं अष्टमी तो कहीं नवमी को कन्या जिमाई और पूजन भी किया जाता है। इसके अलावा धार्मिक स्थलों और घरों में मां दुर्गा के निमित पाठ भी शुरू हो गए हैं। मां भगवती का जन्म पर्वत राज हिमालय के यहां हुआ था इसलिए इन्हें शैलपुत्री भी कहा जाता है

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