Tuesday, October 1

सरिसवा नदी प्रदूषण मामले में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने दिया कार्रवाई का निर्देश

● सरिसवा नदी के प्रदूषण को रोके बगैर गंगा को भी शुद्ध नहीं किया जा सकता

● भारत और नेपाल दोनों ही देश पर्यावरण संरक्षण के हिमायती फिर भी एक नदी को बचाने में अब तक रहे असफल

रक्सौल।( vor desk )।राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, नदी विकास व गंगा संरक्षण, जल शक्ति मंत्रालय (भारत सरकार) ने सरिसवा नदी प्रदूषण मामले में बीते 30 जून को बिहार सरकार के एसपीएमजी (स्टेट लेवल प्रोग्राम मैनेजमेंट ग्रुप) को समुचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। यह निर्देश शिक्षाविद डॉ. स्वयंभू शलभ द्वारा पीएमओ में निबंधित अपील के आलोक में जारी किया गया है। इसकी जानकारी नमामि गंगे से जुड़े राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के अनुभाग अधिकारी दिनेश कोछड़ ने डॉ. शलभ को मेल के जरिये दी है। वहीं मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा भी इस मामले को रवि परमार, सचिव, लघु जल संसाधन विभाग समेत जल संसाधन विभाग, बिहार को आवश्यक कार्रवाई हेतु भेजा गया है।

अपनी अपील में डॉ. शलभ ने पीएमओ एवं मुख्यमंत्री कार्यालय को बताया था कि नेपाल की पहाड़ियों से निकलने वाली सरिसवा नदी का पवित्र और निर्मल पानी भारत के सीमाई क्षेत्र रक्सौल तक पहुँचते पहुँचते जहरीला हो जाता है। वर्षों से सीमावर्ती क्षेत्र के लोग इस दंश को झेल रहे हैं। अभी तक यह दशा केवल सरिसवा नदी की थी अब इसके साथ मरलहिया नदी का नाम भी शामिल हो गया है जो सरिसवा से थोड़ी ही दूर पूरब में बहती है। यह नदी आगे चलकर बंगरी नदी से मिल जाती है जो आगे बूढ़ी गंडक (सिकरहना) के रास्ते खगड़िया जिले में पहुँचकर गंगा में समाहित हो जाती है। डॉ. शलभ ने बताया है कि नेपाल स्थित उद्योगों के रासायनिक अपशिष्ट इस नदी में भी आने लगे हैं जिसकी वजह से इसका रंग गाढ़ा पीला हो गया है। कुछ दिनों पूर्व पानी के ऊपर चमकीला तरल भी दिखाई दिया। नदी के आसपास बसे लोग काली सरिसवा और पीली मरलहिया को देखकर अचंभित और आशंकित हैं।

इस क्रम में डॉ. शलभ ने यह भी बताया है कि देश में प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े सभी मंत्रालयों और विभागों को यह समझना होगा कि सरिसवा और मरलहिया जैसे प्रदूषण के प्रमुख स्रोत को रोके बगैर गंगा को भी शुद्ध नहीं किया जा सकता।

डॉ. शलभ ने आगे कहा है कि यह असफलता सबों की असफलता है। हमारी आने वाली पीढ़ियां प्राकृतिक संसाधनों की इस दुर्दशा के लिए हमें कभी माफ नहीं करेंगी। वो सवाल उठाएंगी कि हम कैसा पर्यावरण उनके लिए छोड़ गए। वो पूछेंगी कि कैसे यहां के जीते जागते लोग असंवेदनशील बनकर अपनी आंखों के सामने उन नदियों को तिल तिल कर मरते देखते रहे जो कभी जीवनदायिनी कहलाती थीं। वो पूछेंगी कि यहाँ की सरकारें, यहाँ की व्यवस्था क्यों नहीं कोई कारगर कदम उठा पाईं जबकि भारत और नेपाल दोनों ही देश पर्यावरण संरक्षण के हिमायती हैं और दोनों के बीच आपसी गहरे सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध हैं।

इस नदी के प्रदूषण ने न केवल भारत नेपाल सीमा क्षेत्र के पर्यावरणीय खतरे को बढ़ाया है बल्कि प्रकृति की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के नियमों के आगे एक बड़ा प्रश्नचिह्न भी खड़ा कर दिया है। डॉ. शलभ ने इस समस्या पर नेपाल सरकार के साथ तत्काल बात किये जाने की मांग की है। कहा है कि इससे पहले कि इस नदी का प्रदूषण भी सरिसवा के समान जानलेवा बन जाय इसके प्रदूषण के स्रोतों की जाँच कर इस पर तत्काल रोक लगाया जाना जरूरी है।

उम्मीद की जा सकती है कि ‘नमामि गंगे’ से जुड़े राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा इस समस्या पर ध्यान दिए जाने के बाद इसके समाधान का रास्ता जरूर निकलेगा।

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